जांच में क्या पता चला
करीब एक घंटे तक डीएम खुद कार्यालय में खड़े रहकर पूरे मामले की तह तक जाते रहे. संबंधित संचिका को ढूंढकर मंगवाया गया, जिसके बाद डीएम ने उसमें संलग्न सभी दस्तावेजों की गहन जांच की. जांच के क्रम में यह स्पष्ट हुआ कि आवेदक ने 29 मार्च 2025 को ही सभी आवश्यक कागजात जमा कर दिये थे, बावजूद इसके भू-अर्जन कार्यालय के लिपिक राजेश कुमार ने संचिका को बिना किसी कारण के लंबित रखा था.
कानूनगो धीरेंद्र कुमार ने बिना संचिका की जांच किए गलत रिपोर्ट सौंप दी, जिसमें कहा गया कि खतियानी कागजात और अन्य जरूरी दस्तावेज जमा नहीं हैं, जबकि संचिका में सभी कागजात संलग्न पाये गये. डीएम ने मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्काल कार्रवाई करते हुए लिपिक राजेश कुमार को निलंबित कर दिया और कानूनगो के कार्यकलापों की जांच का आदेश भी दे दिया.
जांच के लिए बनी उच्चस्तरीय समिति
डीएम ने इस मामले की निष्पक्ष जांच के लिए जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है, जिसमें डीसीएलआर सदर, जिला भू-अर्जन पदाधिकारी और आवेदक स्वयं को भी शामिल किया गया है. यह समिति पूरे मामले की बारीकी से जांच कर डीएम को रिपोर्ट सौंपेगी. इसके साथ ही डीएम ने जिला भू-अर्जन पदाधिकारी से स्पष्टीकरण भी तलब किया है कि आखिर किस आधार पर इतने दिनों तक मुआवजा भुगतान लंबित रखा गया.
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सात दिनों में लंबित मुआवजा मामलों के निबटारे का आदेश
डीएम शशांक शुभंकर ने भू-अर्जन कार्यालय के समस्त कर्मियों को कड़ा निर्देश देते हुए कहा कि यदि और भी ऐसे मामले हैं, जहां सभी कागजात पूर्ण रूप से जमा हैं, फिर भी मुआवजा का भुगतान रुका हुआ है, तो अगले सात कार्यदिवसों के भीतर सभी मामलों का निबटारा सुनिश्चित किया जाये. उन्होंने स्पष्ट कहा कि किसी भी हाल में पीड़ितों को कार्यालय के चक्कर न काटने पड़ें और पारदर्शिता के साथ सभी मामलों का निष्पादन हो.
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