कंचन/नीरज कुमार, गया जी. गया जी संग्रहालय, जिसका इतिहास लगभग सात दशकों पुराना है, आज गया जी संग्रहालय सह मगध सांस्कृतिक केंद्र के नाम से जाना जाता है. यह संग्रहालय विभिन्न कालखंडों की दुर्लभ मूर्तियों और कलाकृतियों का भंडार है, जो न केवल गया की बल्कि संपूर्ण मगध की सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है. संग्रहालय के स्थापना का श्रेय प्रमुख रूप से बलदेव प्रसाद (बाला बाबू) को जाता है, जिन्होंने 23 अप्रैल 1947 को ””सोसाइटी ऑफ इंडियन कल्चर”” की स्थापना की. इस संस्था ने 21 जनवरी 1950 को आयोजित एक बैठक में संग्रहालय की स्थापना की मांग का प्रस्ताव पारित किया. ऐतिहासिक व पुरातात्विक महत्व के अवशेषों को संरक्षित रखने की दिशा में सोसाइटी द्वारा किये गये कार्यों में तत्कालीन जिलाधिकारी जगदीश चंद्र माथुर का विशेष सहयोग रहा.
10 अक्टूबर 1952 को गठित उप-समिति की पहली बैठक में प्रस्तावित संग्रहालय का नाम ‘गया म्यूजियम’ रखने का निर्णय लिया गया. 16 से 20 नवंबर 1952 तक जवाहर टाउन हॉल में कलाकृतियों की एक प्रदर्शनी लगायी गयीं, जिसका उद्घाटन तत्कालीन वित्त मंत्री अनुग्रह नारायण सिंह ने किया। प्रदर्शनी में रखी गई सामग्रियों को संग्रहालय को दान कर दिया गया, जिससे संग्रहालय की नींव पड़ी.
उद्घाटन और सहयोग
सरकारीकरण और विकास यात्रा
14 फरवरी 1970 को संग्रहालय को सरकारी मान्यता प्राप्त हुई. जैसे-जैसे पुरातात्विक संग्रह बढ़ता गया, संग्रहालय को मौरियाघाट के मकसूदपुर हाउस, फिर डाक बंगला और अंततः सरकारी बस स्टैंड-सिकरिया मोड़ रोड स्थित भव्य भवन में स्थानांतरित किया गया. प्रथम क्यूरेटर मो नसीम अख्तर के योगदान से संग्रह अभियान को बल मिला. उन्होंने गया के विभिन्न स्रोतों से पुरावशेषों की जानकारी जुटाई और आम जनता के सहयोग से संग्रह को समृद्ध किया.
प्रशासनिक सहयोग और विस्तार
सिल्वर जुबली और सांस्कृतिक कार्यक्रम
संग्रहालय के 25 वर्ष पूरे होने पर 120 दिनों तक सिल्वर जुबली कार्यक्रमों का आयोजन हुआ. डीएम पीपी शर्मा की अध्यक्षता में कमेटी बनी और केंद्रीय पर्यटन मंत्री पी कौशिक ने उद्घाटन किया. बिहार सरकार के पर्यटन मंत्री मोहन राम, पर्यटन निदेशक डॉ. सीताराम राय, सांसद सुखदेव प्रसाद वर्मा, और अन्य गणमान्य अतिथि उपस्थित रहे.
प्रदर्श संग्रह और अनमोल धरोहरें
नौवीं से 12वीं शताब्दी की कांस्य प्रतिमाएं, 16वीं से 19वीं शताब्दी की हस्तलिखित पांडुलिपियां जैसे श्रीमद्भागवत गीता, स्कंद पुराण, मेघदूत, दुर्गा सप्तशती, रामचरितमानस, आइन-ए-अकबरी और खमस-ए-शेख निजामी यहां संरक्षित हैं.प्राचीन हथियारों में कटार, भाला, तलवार और चमड़े की ढाल, वैशाली व कुम्हरार की खुदाई से प्राप्त मृण्मूर्तियां, छठी शताब्दी ईसा पूर्व से 20वीं शताब्दी तक के सोने, चांदी व तांबे के सिक्के संग्रहालय की शान बढ़ा रहे हैं.
बताते हैं अधिकारी
दो माह पहले सहायक संग्रहालय क्यूरेटर के पद पर योगदान दिया हूं. यहां की स्थिति देखकर मन को काफी दुख हुआ. अगले दो महीने में गया संग्रहालय की सूरत बदल जायेगी. संग्रहालय परिसर में बनी पिंडदान संस्कार गैलरी सहित अन्य सभी अमूल्य धरोहरों को उनकी पहचान व संक्षिप्त इतिहास के साथ सुसज्जित दीर्घा में प्रदर्शित किया जायेगा. वहीं दूसरी तरफ विजिटर की संख्या में वृद्धि को लेकर मल्टी प्ले गार्डन बनाया गया है, जो बच्चों व उनके अभिभावकों को काफी आकर्षित कर रहा है.डॉ सुधीर कुमार यादव, संग्रहालय सहायक
क्या कहा लोगों ने
करीब चार वर्ष पहले संग्रहालय गया था. अधिकतर दीर्घा बंद थे. रोशनी का अभाव था. ड्यूटी पर तैनात कर्मचारी द्वारा दीर्घा खोलकर दिखलाया गया, लेकिन रोशनी के अभाव में धरोहरों की जानकारी पढ़ने में दिक्कत हो रही थी.
तीन वर्ष पूर्व दोस्तों के साथ संग्रहालय घूमने गया था. काफी अच्छा लगा. काफी पुरानी-पुरानी मूर्तियां, पाषाण युग के मिट्टी के बर्तन, गुप्त व पाल काल की मूर्तियां व अन्य अमूल्य धरोहरों की संग्रहालय में भरमार है.
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