विष्णुपद मंदिर का नियंत्रण पंडा के हाथों से निकला, बैठक के बाद लिया जायेगा पुनर्विचार याचिका पर फैसला

विष्णुपद मंदिर पर मलिकाना हक को लेकर धार्मिक न्यास बोर्ड व विष्णुपद मंदिर प्रबंधन समिति के बीच वर्ष 1963 में पहली बार तकरार शुरू हुई थी. मामले में मालिकाना हक को लेकर पटना हाईकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट में भी समिति की हार हुई है. इस समिति का निबंधन 1958 में न्यास बोर्ड से हुआ था

By Anand Shekhar | August 10, 2024 8:56 PM
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गया के विष्णुपद मंदिर के मामले में पटना हाइकोर्ट द्वारा दिये गये फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराते हुए पंडा समाज की याचिका को पिछले दिनों खारिज कर दिया. पटना हाइकोर्ट इसे सार्वजनिक प्रकृति का धार्मिक न्यास करार दिया था. इसके विरुद्ध पंडा समाज ने सुप्रीम कोर्ट में इसके विरुद्ध याचिका दायर किया था, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया. हालांकि विष्णु पद मंदिर प्रबंधन समिति के अध्यक्ष शंभू लाल विट्ठल ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर की जा सकती है.

उन्होंने यह भी कहा कि इससे पहले पंडा समाज के सभी लोगों के साथ बैठक कर मंत्रणा की जायेगी. मंत्रणा के बाद जो भी समाज का निर्णय होगा, कदम उस ओर बढ़ाया जायेगा. उन्होंने कहा कि विष्णुपद वेदी है, मंदिर नहीं. पंडा समाज का इस पर मालिकाना हक वर्षों पूर्व से चला आ रहा है. साथ ही यह इस समाज का भरण पोषण का साधन भी है.

धार्मिक न्यास बोर्ड व विष्णुपद मंदिर प्रबंधन समिति के बीच वर्ष 1963 में शुरू हुई थी तकरार

विष्णुपद मंदिर पर मलिकाना हक को लेकर धार्मिक न्यास बोर्ड व विष्णुपद मंदिर प्रबंधन समिति के बीच वर्ष 1963 में पहली बार तकरार शुरू हुई थी. धार्मिक न्यास बोर्ड की ओर से कानूनी स्तर पर इस मामले को देख रहे अधिवक्ता राजन प्रसाद ने बताया कि धार्मिक न्यास बोर्ड का गठन वर्ष 1950 में हुआ था. बोर्ड के नियमानुसार राज्य में चल रहे सभी धर्म स्थलों को बोर्ड से साक्षात संबंधता सशक्त संबंधता लेना जरूरी था. इस दायरे में विष्णुपद मंदिर प्रबंधन समिति को भी शामिल किया गया.

बोर्ड के निर्देश पर समिति ने वर्ष 1958 (करीब) में धार्मिक न्यास बोर्ड से समिति का संबंधन कराया था. नियम के अनुसार आमदनी के हिस्से की राशि समय पर समिति द्वारा जमा नहीं करने के कारण धार्मिक न्यास बोर्ड द्वारा कई बार नोटिस दिया गया. इसके बाद भी जमा नहीं करने पर विष्णुपद मंदिर को अधिग्रहण करने के नोटिस के माध्यम से जब बोर्ड द्वारा समिति को चेतावनी दी गयी तब समिति मंदिर पर स्वामित्व को लेकर व 38/1977 में सिविल कोर्ट में टाइटल सूट किया.

1992 में गयापालों के पक्ष में एकतरफा फैसला आया था

उन्होंने बताया कि इस मामले में 1992 में गयापालों के पक्ष में एकतरफा फैसला आ गया. इस फैसले के खिलाफ धार्मिक न्यास बोर्ड ने भी स्थानीय न्यायालय में 43/1993 याचिका दायर की. इस मामले में 14 दिसंबर 2020 को अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने विष्णुपद मंदिर को सार्वजनिक प्रॉपर्टी घोषित करते हुए धार्मिक न्यास बोर्ड के पक्ष में अपना फैसला सुनाया. यहां से हार मिलने पर उच्च न्यायालय गये.

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उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश संजय करोल द्वारा इस मामले पर सुनवाई करते हुए सिविल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए मंदिर प्रबंधन के लिए एक कमेटी गठित कर दी गयी. इस पर स्टे को लेकर समिति सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की जिस पर फैसला आना अभी बाकी है. इस फैसले के खिलाफ समिति द्वारा 2001 में हाइकोर्ट में अपील दायर की, जिसे 2023 में गया कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए अस्वीकृत कर दिया गया.

इसके बाद पंडा समाज द्वारा हाइकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पिटीशन दायर किया जिस पर छह अगस्त 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने भी पंडासमाज के इस अपील को अस्वीकृत करते हुए सिविल व हाइकोर्ट के फैसले को ही बरकरार रखा.

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