गया जी. अंग्रजी-हिंदी अक्षर ज्ञान के लिए पढ़ा लिखा माहौल, स्कूल जाने को महत्वपूर्ण माना जाता है. लेकिन, बिना स्कूल गये, पल-बढ़ कर जवानी में रोजगार तलाश के लिए शहर में पहुंच कर रिक्शा चलाने लगे. रिक्शा चलाने के क्रम में रोड किनारे से कागज व कुछ लिखा हुआ उठाकर आसपास के लोगों से पूछ कर हिंदी-अंग्रेजी लिखना पढ़ना सीख लेना आश्चर्य की बात है. यह कहानी जिले के इमामगंज प्रखंड के कोचिया गांव के रहनेवाले 50 वर्षीय सूरज यादव का है. सूरज बताते हैं कि रिक्शा चलाने के दौरान किसी पढ़े लिखे सवारी अगर फोन पर अंग्रेजी में बात करते थे, तो उन्हें भी अंग्रेजी सीखने का मन करने लगा. वे स्कूल का मुंह तक नहीं देखे हैं. गया में रहने के दौरान अंग्रेजी-हिंदी लिखना पढ़ना सीख लिया. शिक्षा के लिए किसी का उम्र निश्चित नहीं होता है. रिक्शा जीविकोपार्जन के लिए चलाते हैं. इसको बाद सीखने की ललक के चलते खाली समय में रिक्शा पर आराम करते वक्त कागज पर हिंदी व अंग्रेजी लिखते रहे. अब ज्यादातर का शब्द का अंग्रेजी अक्षर लिखने में कोई दिक्कत नहीं होती है. अफसोस है कि खुद नहीं पढ़े. इसका खामियाजा अब तक भोग रहे हैं. कोशिश करते हैं कि पहचान वालों को बताया जाये कि शिक्षा से वंचित किसी बच्चे को नहीं रखें. शिक्षा के बदौलत ही अच्छे मुकाम को हासिल किया जा सकता है. उन्होंने बताया कि बच्चों को अपने सामर्थ्य के अनुरूप शिक्षा देने में कोई कमी नहीं की है. उनके रिक्शा चलाने से अब बहुत मुश्किल से ही परिवार का भरण-पोषण हो रहा है. इस सवारी को भी कोई अब पसंद नहीं करता है. मेहनत के एवज में उन्हें मेहनताना भी नहीं मिल पाता है. फिर भी रिक्शा चलाना उनके सामने मजबूरी है.
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