सीयूएसबी की शोध टीम को मिली
वन्यजीव फोरेंसिक में बड़ी सफलता
फोटो- गया बोधगया 210- शोध में शामिल शिक्षक व शोधार्थी
वरीय संवाददाता, गया जी़
पक्षियों के डीएनए में एक विशिष्ट जीन को लक्षित करती है विकसित तकनीक
सीयूएसबी के प्रो. राम प्रताप सिंह (पूर्व वरिष्ठ वैज्ञानिक, एसएसीओएन) व बेंगलुरु में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एनिमल न्यूट्रिशन एंड फिजियोलॉजी के डॉ कोचिगंती वेंकट हनुमत शास्त्री के नेतृत्व में टीम ने एक पीसीआर-आरएफएलपी (पोलीमरेज चेन रिएक्शन-रिस्ट्रिक्शन फ्रेगमेंट लेंथ पॉलीमोरफिज्म) तकनीक विकसित की है, जो पक्षियों के डीएनए में एक विशिष्ट जीन को लक्षित करती है. शोध की देखरेख करने वाले प्रो आरपी सिंह ने बताया कि हमारी विधि को विशेष रूप से शक्तिशाली बनाने वाली बात इसकी सरलता और विश्वसनीयता है. बुनियादी प्रयोगशाला सुविधाओं वाले वन्यजीव अधिकारी अब अनिश्चित रूपात्मक विशेषताओं पर निर्भर रहने के बजाय कुछ ही घंटों में इन प्रजातियों की निश्चित रूप से पहचान कर सकते हैं.जंगली कॉमन क्वेल का अवैध व्यापार एक समस्या
डॉ शास्त्री ने कहा कि यह शोध इस बात का उदाहरण है कि आधुनिक आनुवंशिकी उपकरण किस तरह व्यावहारिक संरक्षण चुनौतियों का समाधान कर सकते हैं. यह विधि कॉमन क्वेल के कॉक्स 1 जीन में एक अद्वितीय साइट की पहचान करके काम करती है, जो जापानी क्वेल में अनुपस्थित है व जब डीएनए को बीएसबीआइ नामक एक विशिष्ट एंजाइम से उपचारित किया जाता है, तो यह विशिष्ट टुकड़े उत्पन्न करता है, जो जेल पर देखे जाने पर प्रत्येक प्रजाति के लिए अलग-अलग बैंडिंग पैटर्न बनाते हैं. जंगली कॉमन क्वेल का अवैध व्यापार भारत में एक सतत समस्या रही है़ यहां जापानी क्वेल पालन कानूनी है, लेकिन जंगली कॉमन क्वेल का शिकार निषिद्ध है. पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने पहले मूल्यांकन के बाद प्रतिबंध हटाने से पहले पहचान संबंधी कठिनाइयों के कारण जापानी क्वेल पालन पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया था.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है