Gaya News : बुद्ध के विचारों को कला व पुरातत्व के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने की जरूरत

Gaya News : मगध विश्वविद्यालय स्थित प्राचीन भारतीय एवं एशियाई अध्ययन विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय वैश्विक संगोष्ठी का समापन हो गया.

By PRANJAL PANDEY | May 14, 2025 11:24 PM
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बोधगया़ मगध विश्वविद्यालय स्थित प्राचीन भारतीय एवं एशियाई अध्ययन विभाग द्वारा आयोजित दो दिवसीय वैश्विक संगोष्ठी का समापन हो गया. दूसरे दिन के कार्यक्रम में भी देश-विदेश के विभिन्न विद्वानों द्वारा व्याख्यान प्रस्तुत किया गया. समापन समारोह की अध्यक्षता मगध विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो उपेंद्र कुमार ने की. उन्होंने कहा कि मगध विश्वविद्यालय में इतने उच्चस्तरीय कार्यक्रम का आयोजन हमारी संस्था की गुणवत्ता को दर्शाता है. मुख्य अतिथि भारत सरकार के पूर्व वित्तीय सलाहकार जयंत मिश्रा थे. उन्होंने कहा कि मगध की भूमि पर इस प्रकार के अंतरराष्ट्रीय विद्वानों की उपस्थिति में आसियान एवं बिमस्टेक देशों के प्रतिनिधियों की भागीदारी के साथ विद्वत संगोष्ठी का आयोजन किया जाना गर्व की बात है. बतौर वक्ता एवं सम्मानित अतिथि के रूप में वर्ल्ड बुद्धिस्ट कल्चरल फाउंडेशन के अध्यक्ष भंते दीपानकर सुमेधो ने बुद्ध के विचारों को कला एवं पुरातत्व के माध्यम से उसके सही इतिहास को जनमानस तक पहुंचाने की बात कही. अकादमिक सत्र का समापन सीयूएसबी के प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व विभाग के प्रोफेसर आनंद सिंह के व्याख्यान से हुआ. उनके व्याख्यान ने भारत और थाईलैंड के बीच सभ्यतागत व ऐतिहासिक निरंतरता का कुशलतापूर्वक पता लगाया, जिसमें बौद्ध धर्म के संचरण, समुद्री व्यापार और सांस्कृतिक प्रतीकवाद पर विशेष ध्यान दिया गया. भारत-थाईलैंड संबंध केवल कूटनीतिक या आर्थिक नहीं इस शैक्षणिक सत्र ने इस बात की पुष्टि की कि भारत-थाईलैंड संबंध केवल कूटनीतिक या आर्थिक नहीं हैं, बल्कि गहराई से सभ्यतागत है. साझा वास्तुशिल्प रूपांकनों से लेकर धार्मिक दर्शन तक, पवित्र भूगोल से लेकर कलात्मक अभिव्यक्तियों तक ऐतिहासिक व सांस्कृतिक रिश्तेदारी जीवंत है और निरंतर अकादमिक ध्यान देने योग्य है. कार्यक्रम के अंत में ग्लोबल सेमिनार के संयोजक सह सचिव डॉ विनोद कुमार यादवेंदु द्वारा दो दिवसीय सेमिनार के सफल आयोजन पर सभी को बधाई ज्ञापित करते हुए इस कार्यक्रम को सफल बनाने में उत्तरदायित्व निभाने वाले विभाग के सहकर्मी शिक्षकों को धन्यवाद दिया. विभिन्न देशों जिसमें, वियतनाम, इंडोनेशिया, थाईलैंड व कंबोडिया से भाग लेने वाले विद्वानों ने इस प्रकार के कार्यक्रम को भविष्य में भी करने की जरूरत बतलाया, ताकि बुद्ध की भूमि से संबंध बना रहे.

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