Video: गया की डिप्टी मेयर की अनोखी बगावत, सम्मान नहीं मिला तो सड़क पर बेचने लगीं सब्जी

गया नगर निगम की डिप्टी मेयर चिंता देवी सोमवार को शहर के केदारनाथ मार्केट में सब्जी बेचती नजर आईं. लेकिन वो सब्जी क्यों बेच रही हैं, इस सवाल का जवाब उन्होंने खुद ही दिया, देखें वीडियो...

By Anand Shekhar | December 2, 2024 6:10 PM
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सोमवार को गया शहर में एक ऐसा नजारा देखने को मिला, जिसने सभी को चौंका दिया. निगम की डिप्टी मेयर चिंता देवी ने अधिकारियों की उपेक्षा से परेशान होकर केदारनाथ बाजार में सड़क पर बैठकर सब्जी बेचना शुरू कर दिया. यह नजारा देख शहर के लोग हैरान रह गए और यह पूरी घटना चर्चा का विषय बन गई.

डिप्टी मेयर होने का क्या फायदा जब घर खर्चे के लिए पैसे ही नहीं: डिप्टी मेयर

चिंता देवी ने कहा कि डिप्टी मेयर होने के बावजूद उन्हें कोई खास तरजीह नहीं मिलती और उनके पास आय का कोई दूसरा जरिया भी नहीं है. उन्होंने कहा, “मैं कुर्सी तो संभाल सकती हूं, लेकिन जब पैसे ही नहीं मिलेंगे तो घर का खर्च कैसे चलाऊंगी, इसलिए सड़क पर बैठकर सब्जी बेच रही हूं.” उन्होंने कहा कि बार-बार उनकी मौजूदगी को नजरअंदाज किया गया, जिसके कारण उन्हें इस तरह सब्जी बेचने पर मजबूर होना पड़ा. उनका कहना है कि अगर डिप्टी मेयर होने के बावजूद उन्हें सम्मान नहीं मिलता तो उनके पद का क्या महत्व है.

क्या कहते हैं मेयर

मेयर डॉ. वीरेंद्र कुमार उर्फ ​​गणेश पासवान ने डिप्टी मेयर चिंता देवी के सब्जी बेचने की खबर पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, ‘मेयर, डिप्टी मेयर और नगर निगम प्रतिनिधियों के लिए सरकार की ओर से कोई सुविधा नहीं दी जाती है. 10 महीने से भत्ता भी नहीं दिया गया है. मजबूरी है कि परिवार चलाने के लिए कुछ काम करना पड़ता है. वार्डों में काम के लिए पार्षदों की राय ली जाती है. कम लोगों का प्रतिनिधि होने के बावजूद विधायकों को मेयर से ज्यादा सुविधाएं दी जाती हैं. इस तरह के भेदभाव को दूर करने के बाद ही पारदर्शी तरीके से विकास को आगे बढ़ाया जा सकता है. क्या हम लोगों की समस्याओं को सुनकर उनके समाधान के लिए कोई सटीक उपाय नहीं कर सकते?’

सफाईकर्मी से डिप्टी मेयर तक का सफर

चिंता देवी का जीवन संघर्ष से भरा है. उन्होंने 40 साल तक नगर निगम में सफाई कर्मचारी के तौर पर काम किया. कूड़ा उठाने और झाड़ू लगाने जैसी जिम्मेदारियां निभाने के बाद इस बार उन्होंने डिप्टी मेयर का चुनाव लड़ा. सफाई कर्मचारियों और स्थानीय नागरिकों के समर्थन से वे रिकॉर्ड मतों से विजयी हुईं.

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