गुलशन कश्यप, जमुईसनातन परंपरा में नव वर्ष का शुभारंभ रंगों के त्योहार होली मनाने के साथ आरंभ होता है. भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में होली मनाने की भी अलग-अलग परंपरा है. कहीं होलिका दहन और उसके बाद रंगों से होली खेलने की सामान्य परंपरा है, तो वहीं आदिवासी समुदाय में फूलों के साथ होली मनाने की परंपरा है. फाल्गुन पूर्णिमा पर आदिवासी समुदाय पेड़ों व फूलों की पूजा करते हैं. उसके बाद गांव के लोग एक जगह एकत्र होकर गीत गाकर झूमते हुए फगुआ का जश्न मनाते हैं. जिले के खैरा थाना क्षेत्र के सकदरी गांव में आदिवासी जनजाति समूह में होली को बाहा पर्व के रूप में मनाया जाता है. हालांकि अलग-अलग आदिवासी क्षेत्रों में इस त्योहार को मनाने का समय भी अलग-अलग होता है. परंतु सगदरी गांव के लोग होली के एक सप्ताह के भीतर ही बाहा पर्व मनाते हैं और इसे अलग तरीके से सेलिब्रेट करते हैं. सगदरी गांव के लोगों ने बताया कि इस त्योहार के दौरान वनस्पति की पूजा करने की परंपरा वर्षों पुरानी हैं. इस दौरान विभिन्न पेड़ पौधे व अलग-अलग प्रजातियों के फूल के पौधों की पूजा की जाती है. गांव के पुरोहित जिन्हें मांझी बाबा जंगल जाकर सखुआ के फूल तोड़ कर लाते हैं, फिर उसी फूल से पौधों की पूजा की जाती है. इसके बाद मांझी बाबा गांव के सभी घरों में जाकर लोगों के बीच सखुआ का फूल वितरित करते हैं. फिर सभी लोग अपने कान पर सखुआ का फूल पहनकर पूरे दिन घूमते हैं.
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