जमुई . शहर के महिसौड़ी मोहल्ला स्थिति मदरसा अशरफिया मुख्तारूल उलेम में गुरुवार को विश्व प्रसिद्ध सूफी हजरत मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी अलैहिर्रहमां की याद में मशदूम-ए-सिमना उर्स मनाया गया. कार्यक्रम की अध्यक्षता हजरत मुफ्ती शाहिद जमाई ने की. इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में मौजूद मौलाना अलहार अबुल कलाम अशरफी और मौलाना निसार अहमद जमाई ने कहा कि अल्लाह के वलियों ने अपना पूरा जीवन अल्लाह और मानवता की सेवा में गुजार दिया. उन्हीं वलियों में हजरत मखदूम सैयद अशरफ जहांगीर सिमनानी है. उनका जन्म 1387 सिमनान में बादशाह के यहां हुआ. हजरत सैयद अशरफ ने चौदह साल की उम्र में तमाम इल्म हासिल कर लिया और पंद्रह साल की उम्र में बादशाह बने. कुछ समय हुकूमत करने के बाद अपने छोटे भाई सुल्तान मो आरिफ को बादशाहत सौंप कर 23 साल की उम्र में सिमनान छोड़ हिन्दुस्तान आ गये. यहां मोहब्बत, भाईचारा व एक दूसरे की मदद की तालिम दी. 1487 में उन्होंने दुनिया को अलविदा कहा. उत्तर प्रदेश के किछौछा शरीफ अम्बेडकर नगर में आपका मजार है जहां जिस्मानी व रूहानी तौर पर लोगों को शिफा मिलता है. मखदमे पाक के भांजे सैयद अब्दुल रज्जाक नुरूल उनके उत्तराधिकारी बने. वहीं उलेमा ने कहा कि हजरत मखदूमे पाक की शख्यित इल्म, अमल और इश्क मिलाप है. मखदूमे पाक की दरगाह पर बिना किसी भेदभाव के हिन्दू मुस्लिम सभी समुदाय के लोग अपने लिए दुआ करते हैं. इसके पूर्व कुरआन-ए-पाक तिलावत से उर्स का आगाज किया गया. साथ ही मदरसे के बच्चों व उलेमा के दौरान नात शरीफ पढ़ा गया. इसके उपरांत दुआ के बाद उर्स संपन्न हुआ। इस अवसर पर मौलाना जयाउद्दीन अशरफी, मौलाना जफीर अशरफी, कारी रहमतुउल्लाह, मौलाना शाहिद रजा, इजहार अशरफी, जावेद अख्तर, हाफिज महबूब, हाफिज हामिद, मौलाना फीदा हुसैन सहित काफी संख्या में मदरसा के बच्चें मौजूद थे.
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