बेनीपट्टी . संपूर्ण मिथिलांचल क्षेत्र में श्रावण में नवविवाहितों का प्रसिद्ध पर्व मधुश्रावणी अपने परवान पर है. इस पर्व के आने से प्रखंड क्षेत्र सहित पूरे मिथिलांचल में आनंदमय बहार आ गया है. हर गांव की गालियां मधुश्रावणी गीत से गुलजार होते दिख रहा है. जब नवविवाहिता सज धज कर फूल लोढ़ने के लिये अपनी सहेलियों के साथ बाग बगीचे में निकलती हैं तब मानों घर आंगन, बाग बगीचा, खेत-खलिहान और मंदिर परिसर में इनके पायलों की झंकार मनोरम छटा बिखेर देतीं हैं. मैथिली गीतों से माहौल में अपना अलग ही रंग बिखेरकर माहौल को मनमोहक बना देती हैं. जब नवविवाहिता की टोली फूल लोढ़ने को निकलती हैं तो उनका साज सज्जा, रुप, श्रृगांर, गीत और सहेलियों में परस्पर प्रेम देखते ही बनता है. बता दें कि नवविवहिता द्वारा आदिकाल से मनाया जाने वाला 15 दिवसीय यह अति महत्वपूर्ण पर्व अपने सुहाग की लंबी आयु के लिये किया जाता है. नागपंचमी के दिन से निर्जला व्रत के साथ नवविवाहिताएं इस पर्व को आरंभ करती हैं और लगातार पंद्रह दिनों तक निष्ठापूर्वक रहकर अखा अरवाइन भोजन ग्रहण करती हैं. प्रतिदिन महिला पंडिताइन द्वारा इस पर्व से जुड़ी किंवदंतियो की कथाओं का वाचन किया जाता है और नवविवाहिताएं ध्यानमग्न होकर कथा का श्रद्धापूर्वक श्रवण करतीं हैं. सायंकाल में नवविवाहिताआं की टोली बनाकर बाग बगीचों में फूल लोढ़ने के लिये के लिये निकलती है तो प्राकृतिक छटाओं के बीच सहेलियों के साथ आपस में हंसी-ठिठोली का अद्भुत विहंगम दृश्य देखने को मिलता है. इस पर्व में बांस के डलिया में चुने हुये बासी फूलों से प्रतिदिन कथा वाचन करने का विधि विधान है. इस पंद्रह दिनों में ससुराल से आये वस्त्र व खाद्य सामाग्रियों का ही उपयोग करती है. वहीं बेनीपट्टी की मुख्यालय की निकिता मिश्रा, शिल्पा, अलका, रुपम, भारती व क्रांति सहित अन्य ने बताया कि अपने सुहाग की मंगल कामना के लिये भगवान शिव की आराधना की जाती है और उनके लिये यह पर्व सभी नवविवाहिताओं के जीवन में महज एक बार ही विवाहोत्सव के बाद पड़ने वाले पहले सावन महीने में ही रखने का मौका मिलता है.
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