मुंगेर. किसी ने ठीक ही कहा कि जो कौम अपने देश पर मर मिटने वाले शहीदों को भूला देती है उसका कोई वजूद नहीं रहता… यह मुंगेर वासियों पर सटीक बैठती है. यही कारण है आज मुंगेर विकास के मापदंड पर लगातार पिछड़ता जा रहा है. क्योंकि आज जहां शहीद चंद्रशेखर आजाद की जयंती देश भर में मनायी जा रही है, वहीं दूसरी ओर ऐतिहासिक, क्रांतिकारी योग नगरी मुंगेर शहर ने उनको भूला दिया. उनके साथ ही अधिकारी, राजनीति दल और स्वयंसेवी संगठन भी शहीद आजाद के शहादत को भुला दिया. यहां तक कि उनके प्रतिमा पर एक माला तक नहीं पहनाया गया. “शहीदों की मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पे मरने वालों का यही बांकी निशां होगा, ” अक्सर स्वतंत्रता दिवस, शहीद दिवस और अन्य राष्ट्रीय अवसरों पर शहीदों को श्रद्धांजलि देते समय दोहराया जाता है. लेकिन मुंगेर आज उन्हीें शहीद को भूला बैठा है. शहर के ह्दय स्थली आजाद चौक पर शहीद भगत सिंह की प्रतिमा स्थापित है. आज जहां पूरा देश उनकी जयंती मना रहा है. वहीं मुंगेर शहरवासियों के साथ ही अधिकारी, नेता, स्वयंसेवी संगठनों ने उन्हें भुला दिया. तभी तो मुंगेर में उनकी आदमकद प्रतिमा पर एक माला तक पहनाने कोई नहीं पहुंचा. बुधवार की रात 9 बजे तक उनकी प्रतिमा उदास देखी गयी. हालांकि जब लालदरवाजा के युवा समाजसेवी राकेश मंडल बाजार में खरीदारी कर रहे थे. तो उनकी नजर शहीद आजाद के प्रतिमा पर पड़ी. वे काफी मर्माहत हुए और खुद को काफी कोसा. रात में ही वे फूलों की दुकान पर गये और एक माला तैयार करवा कर उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण कर नमन किया. उन्होंने कहा कि भारत के युवा क्रान्तिकारी आंदोलन के शहीद चंद्रशेखर आजाद पुरोधा थे. जो मात्र 24 वर्ष की आयु में देश के लिए अपनी शहादत दी. उनकी शौर्यगाथा आज भी भारतवर्ष की धमनियों में उर्जा बनकर प्रवाहित हो रही है. उनका जीवन साहस, स्वाभिमान और बलिदान की प्रतिमूर्ति है.
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