संग्रामपुर. मनुष्य जीवन एक काजल की कोठरी के समान है और जाने-अनजाने में जीव से प्रतिदिन कई पाप होते हैं. उनका ईश्वर के समक्ष प्रायश्चित करना ही एकमात्र मुक्ति पाने का उपाय है. ये बातें अयोध्या से पधारी भावगत कथावाचिका वंदना किशोरी ने शनिवार को दूसरे दिन प्रखंड के रतनपुरा गांव में आयोजित नौ दिवसीय श्री विष्णु महायज्ञ में श्रद्धालुओं को प्रवचन करते हुए कही. कथावाचिका ने कहा कि ईश्वर आराधना के साथ अच्छे कर्म करने से ही प्रभु की प्राप्ति होती है. सत्संग व शास्त्रों में बताये आदर्श का श्रवण करते हुए उन्होंने श्रद्धालुओं को भक्ति के मार्ग को अपनाने का आह्वान किया. उन्होंने कहा कि सत्संग में वह शक्ति है जो व्यक्ति के जीवन को बदल देती है. व्यक्तियों को अपने जीवन में क्रोध, लोभ, मोह, हिंसा, संग्रह आदि का त्याग कर विवेक के साथ श्रेष्ठ कर्म करना चाहिए. अगर इंसान को जीवन में मान, सम्मान बड़ा पद या प्रतिष्ठा मिला है तो उसे ईश्वर की कृपा मानकर भलाई के लिए कार्य करना चाहिए. लेकिन यदि इससे उसके जीवन में किंचित मात्र भी अभिमान हुआ हो तो वह पाप का भागीदार बना देता है. अहंकार से भरे राजा परीक्षित ने जंगल में साधना कर रहे शमिक ऋषि के गले में मरा हुआ सर्प डाल दिया. परिणाम स्वरूप राजा परीक्षित को एक सप्ताह में मृत्यु का श्राप मिला. जब परीक्षित ने अपने सिर से स्वर्ण मुकुट को उतारा तो उन पर से कलयुग का प्रभाव समाप्त हो गया और उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. कथा के दौरान कलाकारों ने गवाया नींद क्यों उसके लिए जो न जरूरी हैं, अरे सोना से तो ज्यादा तुझे सोना जरूरी हैं… भजन गाकर श्रद्धालुओं को खूब झुमाया. विष्णु महायज्ञ में रासलीला के साथ-साथ अखंड रामधुन एवं वैदिक मंत्रोच्चार से वातावरण भक्तिमय हो उठा है.
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