
भोजपुरी गायिका देवी अपनी शालीनता और सभ्यता भरे गीतों के गाने के लिए भोजपुरी इंडस्ट्री में जानी जाती हैं. भोजपुरी इंडस्ट्री में महेंद्र मिश्र और भिखारी ठाकुर के गीतों से पहचान बनाने वाली देवी के अब तक 50 से ज्यादा एल्बम रिलीज हो चुके हैं. उन्होंने भोजपुरी को मंचों से लेकर विदेश तक पहुंचाया है. सादगी उनकी ताकत है और लोकगीत उनकी साधना. छपरा की इस बेटी ने संगीत की शुरुआती शिक्षा यही से ही हासिल की. उनके पिता साहित्यिक थे और वे देवी के बचपन में उनके गानों में शब्दों का चुनाव किया करते थे. इसी वजह से देवी की छवि एक साफ-स्वच्छ सॉन्ग्स को गाने के रूप में बन गयी. वह कई बार खुलकर भोजपुरी गानों में अश्लीलता का विरोध कर चुकी हैं. देवी ने न सिर्फ भोजपुरी बल्कि हिंदी, मैथिली और मगही भाषा में भी अपनी गायकी का लोहा मनवाया है.
संगीत से प्रति लगाव कैसे हुआ?
मुझे याद नहीं की कब से संगीत के प्रति मेरा लगाव हुआ. बचपन की फोटो से पता चलता है कि गायिकी के प्रति लगाव हमेशा से था. मुझे संगीत गॉड गिफ्ट के तौर पर मिला है. घर पर भी संगीत का माहौल मिला जिसकी वजह से पापा ने घर पर संगीत शिक्षक भी रखा. छह साल की उम्र में पहली बार स्टेज पर अपनी प्रस्तुति दी थी. गायिकी के बोल पर पिता का हमेशा से खास ध्यान रहता है यही वजह है भोजपुरी गीतों को मर्यादा में रहकर गाया है. इनके करियर ने भोजपुरी इंडस्ट्री में उस वक्त रफ्तार पकड़ी जब उनका एल्बम ‘बावरिया’ रिलीज हुआ था. यह एल्बम चंदा कैसेट्स की ओर से रिलीज किया गया था जिसमें 8 गानों को शामिल किया गया था. जिस वक्त यूपी-बिहार में बावरिया एल्बम रिलीज हुआ था उस वक्त दर्शकों ने दिल खोलकर उनकी तारीफें की और देवी की आवाज के लोग कायल हो गये.
भोजपुरी हमेशा से मीठी भाषा है लेकिन समय के साथ यह अश्लीलता में रुपांतरित हो रहा है, इसका कारण क्या है ?
भोजपुरी भाषा अपने आप में समृद्ध है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण भिखारी ठाकुर और महेंद्र मिश्र है. इसके पारंपरिक गीत इतने उच्च स्तरीय है कि अगर आप विदाई गीत या कोई अन्य गीत सुनते हैं तो आंखों में आंसू आ जाता है. भाषा में कोई दिक्कत नहीं है बस मानसिकता का फर्क है. जो इस भाषा को अश्लीलता के साथ गा रहे हैं उनका मानसिक स्तर ठीक नहीं है. खासकर जिस तरह से महिलाओं का गानों के जरिये असम्मान हो रहा है इस पर आवाज उठाने की जरूरत है.जो युवा गायिकी की क्षेत्र से जुड़ रहे हैं, उनके लिए कोई संदेश?
भारतीय संगीत में क्लासिकल और फोक दोनों ही हमारी धरोहर है. आज की पीढ़ी को इससे जुड़ना होगा और इसे आगे बढ़ाने का कार्य करना होगा. भारतीय संगीत की पहुंच सिर्फ देश में ही नहीं विदेश में भी है जिसका उदाहरण वह खुद है क्योंकि इनकी प्रस्तुति देश के अलावा विदेश में हो चुकी है और लोगों का उनको भरपूर प्यार मिला.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है