निकेश कुमार,जलालगढ़. निस्संतान दंपती के लिए आस्था, शक्ति एवं श्रद्धा की प्रतीक के रूप में मां जीवच्छ मंदिर में चार दिनों तक चलने वाला मेला रविवार से शुरू हो गया. क्षेत्र के पंडित चंद्रशेखर ठाकुर बताते हैं कि किंवदंति के अनुसार मरोच्छ नामक एक महिला संतान के लिए इस मंदिर से सटे पोखर में कूद गयी. उसके बाद लोगों को स्वप्न आया कि इस पोखर में जो भी निस्संतान दंपती स्नान कर पोखर से सटे मंदिर में पूजन करेगा उसे संतान प्राप्ति होगी. इसके बाद यह कथा क्षेत्र में फैल गई. नि:संतान को संतान होने के बाद पाठी चढ़ावा के रूप में चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गयी. मंदिर के पूरब-दक्षिण की ओर जो पोखर है उसे मरोच्छ पोखर और मंदिर के उत्तर पूर्व स्थित एतिहासिक गंगा सागर के नाम से जानते हैं. धान के लावा से तैयार खोय है खास मेले में धान के लावा से तैयार खोय (ओखरा) काफी प्रसिद्ध है. मंदिर में चढ़ावा के लिए अधिकांश श्रद्धालु इलाइची दान, बतासा के भोग लगाया जाता है. नि:संतान महिलाएं पोखर में स्नान कर संतान के लिये मन्नत मांगती है. संतान होने पर कराते हैं मुंडन प्रत्येक वर्ष यहा चार दिनों में 350 से 400 पाठी का चढ़ावा होता है. सबसे बड़ी बात यह है कि यहां पाठी की बली नहीं दी जाती है. श्रद्धालु विविध मन्नते पूरी होने पर स्वर्ण,चांदी के आभूषण भी मां को समर्पित करते हैं. साथ ही जिनको संतान की मन्नत पूरी होती है तो मुंडन इसी जीवच्छ पोखर के घाट पर कराते हैं. 3.48 लाख का सरकार को मिला राजस्व बिहार सरकार द्वारा चार दिनों तक चलने वाले मेले की नीलामी होती है. जानकारी के अनुसार इस वर्ष तीन लाख 48 हजार रुपये में मेले की नीलामी जलालगढ़ के नवकिशोर विश्वास उर्फ नवल के नाम हुई है. सौहार्द की अनूठी मिसाल यहां हिन्दू, मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग घाट पर पूजा करते हैं और घाट पर श्रद्धालुओं को तिलक लगाने का कार्य वर्षों से परंपरा के रूप में निभाते आ रहे हैं. इस स्थान पर जलालगढ़ क्षेत्र के अलावे गढ़बनैली, कसबा, अमौर, श्रीनगर, पूर्णिया, फारबिसगंज, अररिया, रानीगंज, जोगबनी, कटिहार, किशनगंज, नेपाल, बंगाल के मालदा, दालकोला आदि स्थानों के श्रद्धालु चढ़ावा और मन्नते के लिए पहुंचते हैं.
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