Purnia: बोतलबंद पानी के शौकीन हैं तो हो जायें सावधान, हो सकता है नुकसान

पूर्णिया मे बोतलबंद पानी पीकर शहरवासी बीमार हो रहे हैं. देखा जाए तो जिले मे दर्जनों ऐसे बोतलबंद पानी के उद्योग स्थापित हैं लेकिन महज छह उद्योगों के पास हीं लाइसेंस है. विडंबना तो ये है कि ऐसे बिना लाइसेंस के पानी उद्योगों के खिलाफ कोई कार्रवाई भी नहीं की जा रही है.

By Ravi Ranjan | April 4, 2024 2:50 PM
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  • पूर्णिया में डिब्बा बंद बोतलों का दूषित पानी पीकर बीमार हो रहे शहरवासी
  • जिले में महज छह पैकेज्ड वाटर प्लांट्स के पास लाइसेंस, दर्जनों हो रहे संचालित
  • मानकविहीन वाटर प्लांट और डिब्बाबंद पानी के बोतलों पर रोक की कोई पहल नहीं

Purnia: आज शुद्ध पेयजल की चुनौतियों के बीच बोतलबंद और कैन के पानी का उपयोग हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का अहम हिस्सा बन गया है. मगर यह पानी सेहत के लिए किस हद तक उपयुक्त है, इसकी गारंटी किसी के पास नहीं क्योंकि जिले में मानकविहीन पानी का कारोबार फल-फूल रहा है. कहते हैं, जल ही जीवन है पर जल पीकर अगर लोगों के बीमार पड़ने की संभावना बढ़ जाए तो वह काफी खतरनाक है. पूर्णिया में संबंधित विभाग को पता नहीं कि जिले में चल रहे कितने वाटर प्लांट के पास लाइसेंस है. यह भी किसी विडंबना से कम नहीं कि मानकों की जांच की मामूली पहल तक नहीं होती. आलम यह है कि पूर्णिया में मानकविहीन डिब्बा बंद बोतलों का दूषित पानी पीकर शहरवासी बीमार हो रहे हैं. चिकित्सकों की माने तो दूषित खानपान से अनेक तरह की स्वास्थ्य समस्या किसी को भी हो सकती है. लोग भी शुद्ध पानी के लिए आजकल तरह तरह के उपकरणों को इस्तेमाल में लाने लगे हैं. बाजारों में भी बोतल और डिब्बा बंद जारों में पेयजल की उपलब्धता लम्बे समय से होती आ रही है. खासकर गर्मी में ठंडा और शीतल जल की आपूर्ति में भी कई लोग लगे रहते हैं. तकरीबन हर इलाके में इस तरह का कारोबार चलाया जा रहा है. अगर देखा जाए तो शहरी इलाकों में दर्जन से अधिक वाटर प्लांट चलाए जा रहे हैं जबकि हर पान की दुकान पर डिब्बाबंद बोतल पानी बेचे जा रहे हैं. बाजारों में बोतलबंद, डब्बा बंद, जार और बड़े टैंक वाले वाहनों को हमेशा पानी की आपूर्ति करते देखा जा सकता है. कई स्थानों पर बाजाप्ता छोटी छोटी इकाइयां स्थापित कर डिब्बाबंद पानी के कारोबार ने उद्योग के रूप ले लिए है.

पानी का उद्योग, पर विभाग से कोई नाता नहीं
मजे की बात तो यह है कि इस तरह के कारोबार या उद्योग से उद्योग विभाग का कोई नाता ही नहीं. हालांकि उद्योग विभाग द्वारा किसी ख़ास ब्रांड के नाम के साथ तैयार उत्पाद को कई अन्य विभागों द्वारा स्वीकृति के साथ मान्यता दी जाती है लेकिन वे बड़ी इकाइयां होतीं हैं जिनके लिए अनेक मानकों के निर्धारण के बाद कारोबार की अनुज्ञप्ति जारी की जाती है. लेकिन बिना ब्रांड के इन बोतल, जार और टैंक वाले पानी पर नजर किस प्रकार रखी जाय इस सम्बन्ध में कोई दिशा-निर्देश नहीं दिखता है.

पीएचईडी को भी सरोकार नहीं
आम लोगों तक शुद्ध पेय जलापूर्ति के लिए जिम्मेदार सरकारी संस्था लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग को भी इस तरह की जल आपूर्ति करने वालों पर किसी भी तरह की कार्रवाई का अधिकार प्रदत्त नहीं है. रसायन विशेषज्ञ बताते हैं कि पानी में मौजूद प्राकृतिक तत्वों के अलावा उसका पीएच मान, टीडीएस और नुकसान पहुंचाने वाले अवयवों की पहचान भी जरूरी है. साथ ही भूगर्भीय पेयजल के निष्कासन के पश्चात उस पानी का रख रखाव अगर ठीक से नहीं किया गया तो वो दूषित हो सकता है और मानव शरीर को नुकसान पहुंचा सकता है. लेकिन जिस तरीके से जिले में इस प्रकार के पेयजल को आम लोगों तक पहुंचाया जा रहा है उसे पीकर अगर कोई बीमार पड़ जाएं तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं.

बगैर ब्रांड के पानी की हो रही सप्लाई
बोतल बंद ब्रांडेड कंपनियों को कारोबार और संचालन के लिए कई सरकारी विभागों से प्रमाण पत्र की जरूरत पड़ती है. इनमें लेबर ऑफिस, इंडस्ट्री ऑफिस सहित एफएसएसएआई प्रमाणपत्र शामिल हैं जिन्हें प्राप्त करने के लिए कंपनी की कई पैमाने पर गहन जांच की जाती है. तभी यह प्रमाणपत्र निर्गत किये जाते हैं. लेकिन सूत्रों की मानें तो जिले में अनेक कारोबारी हैं जिनके द्वारा बगैर ब्रांड के पानी सप्लाई धड़ल्ले से की जाती है. जबकि बड़ी बड़ी कंपनियों से मिलते जुलते नामों में अल्फाबेट्स को उलट पलट कर लोगों के साथ धोखाधड़ी की जा रही है. ऐसे उत्पादों को खासकर कम कीमत पर बस स्टैंड और रेलवे स्टेशनों आदि के समीप खपाया जाता है. ऐसे लोग नगर निगम से केवल ट्रेड लाइसेंस लेकर पानी के कारोबार से फलफूल रहे हैं जिन्हें पानी की गुणवत्ता, शुद्धता और आम लोगों के स्वास्थ्य से कोई लेना देना नहीं.

कहते हैं अधिकारी

खुले जार वाले पानी के कारोबार के संबंध में उद्योग विभाग के पास फिलहाल कोई दिशा-निर्देश नहीं है. लेकिन, ब्रांडेड पैकेज्ड वाटर बोतल्स के लिए विभाग से प्रमाण पत्र लेना अनिवार्य होता है. इसमें उत्पादन इकाई से लेकर खाद्य निरीक्षण और श्रम कार्यालय से भी अनुमति का प्रावधान है.

– संजीव कुमार, महाप्रबंधक, उद्योग विभाग

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