बिहार के पूर्णिया में जीवंत हुई दुल्हन विदाई पुरानी परंपरा, डोली पर बैठा ससुराल ले गये कहार
Tradition: पूर्णिया के तारानगर में हुई एक शादी के बाद जब विदाई की बेला आयी तो डोली देख लोग आश्चर्य में पड़ गये. दुल्हन को डोली में बैठाकर जैसे ही 'चलो रे डोली उठाओ कहार' गाना बजा.. विदाई देखने के लिए काफी लोग जुट गये.
By Ashish Jha | February 26, 2025 10:27 PM
Tradition: पूर्णिया. मंगलवार की शाम जब डोली में दुल्हन की विदाई हुई, तो वर्षों पुरानी परंपरा फिर से जीवंत हो गयी. शहर के तारानगर निवासी शंभू प्रसाद केशरी एवं अर्चना केशरी के यहां सोमवार को बरात आयी थी. दूसरे दिन शाम को जब विदाई की बेला आयी तो डोली देख लोग आश्चर्य में पड़ गये. दुल्हन को डोली में बैठाकर जैसे ही ‘चलो रे डोली उठाओ कहार’ गाना बजा.. विदाई देखने के लिए काफी लोग जुट गये.
दहेज मुक्त हुई शादी
तारानगर निवासी शंभू प्रसाद केशरी एवं अर्चना केशरी की बेटी कुमारी भावना (शालू) की शादी स्थानीय थाना चौक निवासी राम लखन प्रसाद केशरी के पुत्र इन्द्रजीत कुमार (मोनु) के साथ हुई. शालु के पिता शंभू प्रसाद केशरी ने कहा कि यह शादी बिल्कुल ही दहेज मुक्त था. खास बात यह थी कि उसने अपने समाज की वर्षों पुरानी परंपरा को पुन: अपनाया और बेटी की घर से विदाई डोली पर की. उन्होंने कहा कि उनका सपना था कि शादी में दूल्हे के साथ बारात बैलगाड़ी पर आये, लेकिन यह संभव नहीं हो सका.
विलुप्त हो रही डोली की प्रथा
शंभू प्रसाद केशरी ने बताया कि उनकी योजना के अनुसार विदाई के लिए डोली बनायी गयी. जिसे उठाने के लिए चार युवक को तैयार किया डोली के पीछे-पीछे मुहल्ले के बच्चे साथ जा रहे थे. एक जमाना था जब, डोली से दुल्हन और घोड़ी पर दूल्हा की विदाई होती थी, लेकिन बदलते दौर के इस वक्त में डोली की प्रथा अब धीरे-धीरे विलुप्त होते जा रही है. हेलीकाप्टर से दुल्हन की विदाई की नई चलन के दौर में पुरानी परंपरा को जीवंत देख लोग दंग रह गये. शहर में इस शादी की काफी चर्चा हो रही है.
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