Madhushravani 2025: मिथिला की नव विवाहिताओं का पर्व मधुश्रावणी शुरू, पति के दीर्घायु होने के लिए रखती हैं यह कठिन व्रत

Madhushravani 2025: मिथिला के सांस्कृतिक एवं अध्यात्मिक जीवन में नवविवाहिताओं के लिए मधुश्रावणी पर्व को अति महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. यह पर्व केवल मिथिलांचल में ही मनाया जाता है. यह पर्व श्रावण मास की कृष्ण पक्ष में मैना पंचमी मंगलवार से शुरू होकर शुक्ल पक्ष तृतीया 27 जुलाई को संपन्न होगा. इस पर्व के दौरान सभी नवविवाहिता नव वस्त्र पहन एवं सोलह श्रृंगार कर फूल, बेलपत्र एवं करोटन के पत्तों को चुन चुन कर लाती हैं एवं बासी फूल से बिषहरा एवं शिव पार्वती की पूजा करती है.

By Paritosh Shahi | July 15, 2025 8:15 PM
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Madhushravani 2025: नवविवाहिता मधुश्रावणी व्रत अपने पति की किसी भी अनहोनी से रक्षा की कामना के लिए करती हैं. इस पर्व में पहले दिन से तेरह दिनों तक मैना पंचमी व विषहरा जन्म की कथा, बिहुला मनसा बिषहरी व मंगला गौरी कथा, पृथ्वी की कथा, समुद्र मंथन कथा, सती पतिव्रता, महादेव के पारिवारिक दंतकथा, गंगा गौरी जन्म कथा, गौरी की तपस्या विवाह की कथा, कार्तिक गणेश जन्म की कथा, गोसाउनिक गीत, विषहरा भगवती गीत गाये जाते हैं. इन दिनों नवविवाहिता अपने मायके का एक दाना तक नहीं खाती हैं.

इस दौरान वह अपने ससुराल से आये खाद्य पदार्थ का सेवन करती है एवं ससुराल से भेजे गये वस्त्र धारण करती है. पूजा करती है एवं पति के दीर्घायु के लिए यह व्रत करती हैं. मधुश्रावणी के अंतिम दिन 27 जुलाई को समापन नवविवाहिताओं को जलती दीप के टेमी दागने के साथ होगा. अहिबात की परीक्षा के लिए टेमी दागने की प्रथा आज भी चल रही है.

तेरह दिनों तक चलने वाली इस पर्व के प्रत्येक दिन धार्मिक पौराणिक एवं प्रचलित दंतकथा नवविवाहिता को महिला ही सुनाती है. कथा समापन के बाद कथावाचक महिला को नववस्त्र एवं दान दक्षिणा दिया जाता है. साथ ही नवविवाहिता के ससुराल से सामग्री भेजी जाती है.

शुक्ल पक्ष तृतीया को होगा संपन्न

ब्रज किशोर ज्योतिष संस्थान संस्थापक पंडित तरुण झा जी ने बताया है कि मिथिलांचल में नव विवाहिता के लिए मधुश्रावणी की शुरुआत श्रावण मास कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि से होती है. जबकि समापन शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को होती है. इस बार इसकी शुरुआत 15 जुलाई मंगलवार से है एवं समापन 27 जुलाई रविवार को होगा.

13 दिन के इस पूजा के दौरान नवविवाहिता को दो दिन नाग देवता की कथा सुनाई जाती है. जबकि बाकी 11 दिन के दौरान सावित्री, सत्यवान, शंकर-पावर्ती, राम-सीता, राधा-कृष्ण जैसे देवताओं की कथा भी सुनायी जाती है. परंपरा के अनुसार नवविवाहिताएं हरी साड़ी व हरी चूड़ी धारण करती है. संध्या काल की पूजा में कोहबर व भगवती गीत गाये जाते हैं.

ससुराल से श्रृंगार पेटी

यह पूजा नवविवाहिताएं अक्सर अपने मायके में ही करती है. पूजा शुरू होने से पहले ही उनके लिए ससुराल से श्रृंगार पेटी आ चुकी है. जिसमें साड़ी, लहठी (लाह की चूड़ी), सिन्दूर, धान का लावा, जाही-जूही (फूल-पत्ती) होता है. मायकेवालों के लिए भी तोहफे शामिल है. (माता गौरी के गाएं जाते हैं गीत ) सुहागिनें फूल-पत्ते तोड़ते समय और कथा सुनते वक्त एक ही साड़ी हर दिन पहनती है. पूजा स्थल पर अरिपन (रंगोली) बनायी गयी. फिर नाग-नागिन, बिसहारा पर फूल-पत्ते चढ़ाकर पूजा शुरू किया गया.

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नाग नागिन पर बासी फूल चढाया गया

नवविवाहिता प्रीति कुमारी, मौसम सिन्हा, निक्की मिश्रा, अमीषा कुमार, मोनी कुमारी, सिम्मी कुमारी, अंशू, सोनी, रेखा, काजल, राखी आदि ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि माता गौरी को बासी फूल नहीं चढ़ता जाता है. नाग-नागिन को बासी फूल-पत्ते ही चढाया गया. पूजा के प्रथम दिन मैना (कंचू) के पांच पत्ते पर हर दिन सिन्दूर, मेंहदी, काजल, चंदन और पिठार से छोटे-छोटे नाग-नागिन बनाया गया. कम-से-कम 7 तरह के पत्ते और विभिन्न प्रकार के फूल पूजा में प्रयोग किया गया.

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