महिला संवाद ग्रामीण क्षेत्रों में बदलाव का बन गया है प्रतीक

महिला संवाद ग्रामीण क्षेत्रों में बदलाव का बन गया है प्रतीक

By Dipankar Shriwastaw | May 23, 2025 5:59 PM
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महिला संवाद में अब तक दो लाग 13 हजार महिलाओं ने लिया भाग सहरसा . जिले की चौपालों का माहौल इन दिनों बदला-बदला सा है. जहां कभी महिलाएं चुपचाप बैठा करती थी, आज वही महिलाएं खुलकर बोल रही हैं, सवाल उठा रही हैं व अपने हक व जरूरतों की बातें कर रही हैं. इस बदलाव के पीछे महिला संवाद अभियान का बड़ा योगदान है. जिले के 10 प्रखंडों में फैले 1468 ग्राम संगठनों में अब तक लगभग दो लाख 13 हजार महिलाओं ने भाग लिया है. शुक्रवार को जिले भर में 24 स्थानों पर आयोजित संवाद सत्रों ने इस अभियान को एक नयी दिशा दी. इन सत्रों में छह हजार से अधिक महिलाओं ने हिस्सा लिया. यह सत्र केवल चर्चा का मंच नहीं बल्कि अनुभव साझा करने व अपनी आकांक्षाओं को शब्द देने का एक माध्यम बना. महिला संवाद कार्यक्रम में मोबाइल संवाद रथों की भूमिका बेहद खास रही. यह तकनीकी संसाधनों से सुसज्जित 12 वैन गांव गांव जाकर महिलाओं को प्रेरित कर रही है. इन वैनों पर चलने वाली एलईडी स्क्रीन पर योजनाओं की जानकारी, कहानियां व ऑडियो-विजुअल सामग्री ने संवाद सत्रों को प्रभावशाली बनाया है. अब यह वैन ग्रामीण क्षेत्रों में बदलाव का प्रतीक बन चुकी है. संवाद सत्रों में महिलाएं अपने मुद्दे एवं सुझाव सामने रख रही हैं. पेंशन में बढ़ोतरी, उच्च शिक्षा के अवसर, सड़क संपर्क, परिवहन, स्वरोजगार एवं किशोरियों के लिए सुरक्षित स्थानों की मांग ने यह स्पष्ट किया कि महिलाएं अब केवल योजनाओं का लाभ लेने वाली नहीं हैं. बल्कि नीति निर्माण में सक्रिय भागीदारी निभा रही हैं. सत्तरकटैया प्रखंड के सिहौल में आयोजित एक सत्र में यमुना देवी ने अपनी संघर्ष यात्रा साझा करते बताया कि आरक्षण नीति ने कैसे उनकी बेटी को शिक्षा एवं समाज में पहचान बनाने का अवसर दिया. इसी तरह जीविका समूह की पांचो देवी ने बताया कि कैसे उन्होंने स्वयं सहायता समूह से जुड़कर गायें खरीदी, दूध बेचकर आय अर्जित की एवं अपने बच्चों की पढ़ाई पूरी कराई. महिला संवाद में महिलाओं के विचार एवं सुझाव डिजिटल टीम द्वारा संकलित किये जा रहे हैं. जिन्हें डैशबोर्ड प्रणाली के माध्यम से जिला एवं राज्य स्तर पर नीति निर्माताओं तक पहुंचाया जा रहा है. यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि नीतियां केवल कागजों पर नहीं बल्कि जमीन पर लागू हों एवं महिलाओं की वास्तविकता को दर्शाये.

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