समय के साथ कम हुई साइकिल की डिमांड, लेकिन कद्रदान अब भी मौजूद

बाइक के बढ़ते इस्तेमाल के बीच कम हुई है इसकी उपयोगिताकई बुजुर्ग ऐसे भी जो 96 वर्ष में भी चलाते हैं फर्राटेदार साइकिल

By ALOK KUMAR | June 2, 2025 4:19 PM
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रसूलपुर (एकमा).

भागदौड़ की जिंदगी के बीच आवागमन के साधन भी तेजी से बदल रहे हैं. 90 के दशक तक जहां जिले में 25 से 30 किलोमीटर तक की दूरी तय करने के लिए अधिकतर लोग साइकिल का इस्तेमाल कर लिया करते थे. वहीं, अब उसकी जगह बाइक ने ले ली है. साइकिल चलाने वाले अब सीमित होते जा रहे हैं. शहरी व ग्रामीण क्षेत्र में अब साइकिल का ज्यादातर इस्तेमाल बच्चे स्कूल जाने के लिए करते हैं या कुछ लोग अभी भी घर से बाजार तक जाने के लिए साइकिल इस्तेमाल कर रहे हैं. वहीं, अभी भी कुछ ऐसे लोग हैं जो बीते कई दशक से साइकिल को ही अपनी प्रमुख सवारी बनाये हुए हैं. एकमा प्रखंड के रसूलपुर थाना की सीमा पर स्थित मांझी थाना का गांव बिगहां जहां 96 वर्षीय सूर्यदेव प्रसाद की साइकिल से जाते देख लोग दांतों तले अंगुली दबा लेते हैं. कोई भी साइकिल हो उम्र के इस पड़ाव में भी फर्राटेदार चलाते हैं. सूर्यदेव प्रसाद के चार बेटे,चार बेटियां सहित पूरे परिवार में करीब 70 सदस्य हैं, जो सूर्यांशी परिवार कहलाते हैं. ये सभी बड़े बड़े पदों पर कार्य करते हैं. कोई हाइकोर्ट में वकील तो कोई इंजीनियर, कोई मेडिकल व्यवसाय है. कायस्थ और लैंड लार्ड परिवार से आनेवाले सूर्यदेव प्रसाद का सहज रहन-सहन व ग्रामीण जीवन देखकर भी सभी अचंभित रहते हैं. गांव में अरविंद सोसायटी आश्रम चलाते हैं. रेल में वरिष्ठ रेलकर्मी पद से सेवानिवृत्त सूर्यदेव प्रसाद भारत भ्रमण भी करते रहते हैं. लेकिन हमेशा गांव पर हीं रहना पसंद करते हैं. हर साल 12 मार्च को सूर्यांशी पत्रिका परिवार द्वारा निकाला जाता है. ग्रामीण और दवा विक्रेता संजय यादव कहते हैं कि सूर्यदेव जी की जीवन शैली पूरे क्षेत्र को आकर्षित करती है जब वे खादी का धोती कुर्ता और गांधी टोपी पहनकर गांव से बाहर निकलते हैं. इनके परिवार के बेटे बेटियां शहरों में भले अपने लग्जरी गाड़ियों से घुमते हैं पर गांव आते हीं वकालत व इंजीनियरिंग भूल जाते हैं और कुदाल उठा कर खेतों में चल देते हैं मानो पुराने किसान हैं, वे समाज को सादा जीवन और उच्च विचार का संदेश देते हैं. आज भी सेकंड हैंड साइकिल तलाश करते हैं लोगसुविधा बढ़ी संसाधन बढ़े हैं. लेकिन आज भी साइकिल के शौकीन कम नहीं है. खासकर दिहाड़ी मजदूर अवागमन के लिए साइकिल को ही पहली पसंद मानते हैं. साइकिल की कीमत भी अब कम नहीं रह गयी है. 18 से 22 इंच तक की साइकिल चार से सात हजार तक के बीच में है. ऐसे में दैनिक मजदूर ज्यादातर सेकेंड हैंड साइकिल तलाश करते हैं. कई पुराने लोगों ने आज भी अपनी साइकिल बचा कर रखी है. महंगे साइकिल के इन दिनों बढ़े हैं शौकीनशहर के प्रसिद्ध साइकिल विक्रेता कुणाल बताते हैं कि इन दिनों महंगे साइकिल खरीदने वालों की तादाद बढ़ी है. कई नये रेंज के साइकिल 15 से 20 हजार तक की कीमत में बाजार में उपलब्ध हैं. ज्यादातर युवा वर्ग इसकी डिमांड करते हैं. अब तो बाजार में इएमआइ पर भी साइकिल उपलब्ध हो जा रही है. शहर के साइकिल विक्रेताओं ने बताया कि समय के साथ साइकिल के लुक व डिजाइन में भी काफी बदलाव किया गया है. मोटरसाइकिल की बढ़ती उपयोगिता के बीच साइकिल अभी भी पसंद किया जाता है. हालांकि इसे चलने वाले लोग अब कम हैं.
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