डोरीगंज/छपरा . गंगा, सरयु और सोन नदियों के त्रिवेणी संगम पर स्थित ऐतिहासिक चिरांद धाम पर ज्येष्ठ पूर्णिमा की रात भक्ति, वैदिक परंपरा और सांस्कृतिक चेतना का अद्वितीय संगम देखने को मिला. चिरांद विकास परिषद द्वारा आयोजित 17वें चिरांद चेतना महोत्सव और गंगा गरिमा संकल्प समारोह में हजारों श्रद्धालुओं ने भाग लिया. देर रात तक संगम तट दीयों की रौशनी और शंखध्वनि से गूंजता रहा. कार्यक्रम का उद्घाटन अयोध्या के लक्ष्मण किला पीठाधीश्वर महंथ मैथिली रमण शरण जी महाराज ने वैदिक मंत्रोच्चार और दीप प्रज्वलन के साथ किया. उन्होंने कहा कि चिरांद की भूमि ऋषियों की तपोस्थली रही है. भगवान श्रीराम और लक्ष्मण जब महर्षि विश्वामित्र के साथ अयोध्या से निकले थे, तो पहली बार रात्रि विश्राम यहीं चिरांद में किया था. यह भूमि उन्हें धर्म और समर की प्रेरणा देने वाली भूमि है. समारोह की अध्यक्षता सारण जिला एवं सत्र न्यायाधीश पुनीत कुमार गर्ग ने की. उन्होंने कहा कि चिरांद का ऐतिहासिक महत्व हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, नालंदा और विक्रमशिला जैसे स्थलों के समकक्ष है. यदि इसका संरक्षण और प्रचार-प्रसार किया जाए, तो यह विश्व पर्यटन मानचित्र पर अपना विशिष्ट स्थान बना सकता है. इस अवसर पर चिरांद विकास परिषद द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वाले लोगों को चिरांद रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया. जिनमें सामाजिक क्षेत्र से देवेश नाथ दीक्षित, स्वास्थ्य सेवा में डॉ रविशंकर पत्रकारिता व साहित्य में राकेश प्रवीर, कत्थक नृत्य में कुमारी अनीशा, कृषि में नचिकेता, पुलिस सेवा में मनीष कुमार शामिल रहे. वहीं काशी से पधारे आचार्य राजेश के नेतृत्व में 11 वैदिक आचार्यों द्वारा गंगा महाआरती सम्पन्न करायी गयी. बाल गायक रौनक रतन द्वारा प्रस्तुत ‘गंगा गीत’ ने आरती के माहौल को भावविभोर कर दिया.सत्यम कला मंच के कलाकारों ने वराहमासा चिरांद गाथा और सारण महिमा जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों से लोगों को चिरांद की गौरवशाली परंपरा से अवगत कराया. समारोह में रामकृष्ण आश्रम के स्वामी दिव्यात्मानंद जी, परिषद के संरक्षक नागा बाबा श्री कृष्णगिरि (जयकारा बाबा), लक्ष्मण किला के सूर्य प्रकाश शरण, कला-संस्कृति पदाधिकारी विभा भारती, परिषद अध्यक्ष कृष्णकांत ओझा, तथा प्रख्यात विद्वान श्री रामदयाल शर्मा ने भी अपने विचार व्यक्त किये.
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