परमानपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल पर श्रीलक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने कर रहे प्रवचन
प्रतिनिधि, सूर्यपुरा
परमानपुर चातुर्मास्य व्रत स्थल पर संत श्रीलक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने प्रवचन करते हुए भगवान के आकार व गुण पर प्रकाश डाला. उन्होंने कहा कि भगवान निराकार नहीं बल्कि आकार वाले हैं. कुछ लोग कहते हैं कि भगवान निराकार हैं. लेकिन, बिना आकर के भगवान की लीला अवतार कैसे हो सकता है. उदाहरण के लिए यदि कहा जायेगा कि किसी व्यक्ति की शादी होने वाली है. लेकिन, वहां पर जिसकी शादी होने वाली है. वह व्यक्ति नहीं है. लेकिन शादी होगी. अब जब वहां पर व्यक्ति ही नहीं है. उसका आकार ही नहीं है.तो शादी किसके साथ होगा. इसलिए जो भी लोग कहते हैं कि भगवान निराकार हैं .उनका कोई आकार नहीं है. भगवान ने अलग-अलग अवतार में कई प्रकार की लीलाएं की हैं. जिनका आकार भी है, जिनका गुण भी है, जिनका मर्यादा भी है, जिनका मार्गदर्शन भी है, जिनका स्वरूप भी है, वही भगवान श्रीमन नारायण अलग-अलग युगों में अलग-अलग प्रकार से अवतार लेकर के जीवों का कल्याण किए है. श्रीमद्भागवत कथा अंतर्गत भगवान के 24 अवतारों की कथा सुनाया जा रहा है. जिसमें भगवान श्रीराम का 18वां अवतार हैं. भगवान श्रीमन नारायण से कमल, कमल से ब्रह्माजी हुए, ब्रह्माजी के पुत्र हुए. जिनके वंश परंपरा में दशरथजी हुए. दशरथ जी के पुत्र श्रीराम हुए. भगवान श्रीराम का जन्म भी मर्यादा की स्थापना के लिए हुआ था. जब रावण युवावस्था में था, उस समय लोगों को बहुत परेशान करता था.जितने भी ऋषि, महर्षि, तपस्वी थे, उनसे टैक्स वसूल करता था. रावण ने सभी ऋषियों से कह दिया था कि आप लोग अपने शरीर से कुछ खून निकाल कर के लगातार मेरे यहां पहुंचाते रहे. वहीं जितने भी ऋषि महर्षि थे, सभी लोग अपने शरीर के कुछ खून रावण के घर पर भेजते थे. रावण उसको एक जगह एकत्रित करके रखता था. रावण उन सभी ऋषि महर्षियों का खून पीकर के उनके शक्ति को प्राप्त करना चाहता था. वहीं एक दिन अपने घर में सारे ऋषियों का खून रखा था .जो रावण की पत्नी मंदोदरी पान कर गई. अब उन ऋषि महर्षिओं के खून को पीने के कारण मंदोदरी गर्भावस्था को प्राप्त कर गयी. जब रावण को इस बात की जानकारी हुई तब रावण मंदोदरी को डांटने लगा. लेकिन अब उन ऋषि महर्षिओं के खून पीने के कारण मंदोदरी के घर में जो बच्चा पल रहा था, वह एक बच्ची के रूप में थी. वही बच्ची को रावण ले जाकर के जनकपुर में मिट्टी के नीचे रखवा दिया. एक बार सूर्य भगवान की पुत्री वेदवती तपस्या कर रही थी. वहीं रावण पहुंच गया. जाकर के कहने लगा कि हम तीनों लोकों के मालिक हैं .हम ईश्वर हैं .हमसे शादी करो. वही वेदवती के बालों को पकड़ लिया. इसके बाद वेदवती ने कहा कि तुमने मेरे तपस्या को भंग किया है. हम तो केवल अपना पति श्रीमननारायण को ही मानते हैं. वहीं वेदवती ने अपनी तपस्या से बालों को काट दिया. जिसके बाद रावण से वेदवती का शरीर अलग हो गया. वहीं वेदवती ने रावण को श्राप दिया कि हम तुम्हारे मृत्यु का कारण बनेंगे. वहीं अगले जन्म में वेदवती ही सीता के रूप में जन्म ली. वहीं भगवान श्रीमन नारायण वेदवती के वचनों को पूरा करने के लिए श्री राम के रूप में अवतरित हुए. आगे चलकर जनकपुर में जो मंदोदरी के द्वारा गर्भ में पल रही बच्ची को मिट्टी के नीचे जो एक मटका में डाल करके रखा गया था .वहीं जब जनक अपने खेत को खुदवा रहे थे, तो वहीं मिट्टी के नीचे रखी गयी जो बच्ची थी. वहीं बच्ची जनक जी अपने घर पर ले आये. जो आगे चलकर सीता के रूप में हुई . जिनकी शादी भगवान रामचंद्र से हुई. एक बार रावण ब्रह्मा जी के पास पहुंचा. जहां पहुंचकर रावण ने ब्रह्मा जी से कहा कि बाबा कुंडली देखकर के बताइए कि मेरे कुंडली में क्या है.वहीं ब्रह्मा जी ने कहा कि रावण तुम्हारे कुंडली में योग अच्छा नहीं है. सूर्यवंश में एक राम होंगे, जो तुम्हारी मृत्यु का कारण बनेगा. अनेक प्रकार से सूर्यवंश परंपरा में दशरथ के विवाहों को बार-बार रोकने का प्रयास किया. कई प्रकार से दशरथ के विवाह इत्यादि में बाधा पहुंचाया. दशरथ के विवाह के बाद भी उनको पुत्र नहीं हो रहा था. आगे चलकर एक ऋषि से यज्ञ करवाया गया. उस यज्ञ से निकले खिर के माध्यम से कौशल्या, कैकई और सुमित्रा को पुत्र की प्राप्ति हुई. जिसके फलस्वरुप कौशल्या से भगवान राम, कैकई से भरत और सुमित्रा से लक्ष्मण और शत्रुघ्न हुए. इस प्रकार से भगवान श्री राम का जन्म हुआ.
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