Sasaram news. बिना महिला चिकित्सक के एक माह में हुए 70 से 80 प्रसव

Sasaram news. आठ करोड़ की लागत से बना 35 कमरों वाला तीन मंजिला अस्पताल सभी संसाधनों से परिपूर्ण नजर आता है. प्रतिदिन सैकड़ों मरीज भी इलाज कराने पहुंचते हैं. लेकिन, डॉक्टरों के अभाव में मरीजों को बेहतर सुविधा नहीं मिल पा रही है.

By JITENDRA KUMAR | March 22, 2025 8:44 PM
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अकोढ़ीगोला. आठ करोड़ की लागत से बना 35 कमरों वाला तीन मंजिला अस्पताल सभी संसाधनों से परिपूर्ण नजर आता है. प्रतिदिन सैकड़ों मरीज भी इलाज कराने पहुंचते हैं. लेकिन, डॉक्टरों के अभाव में मरीजों को बेहतर सुविधा नहीं मिल पा रही है. यह हाल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र अकोढ़ीगोला का है. वर्ष 2024 में आठ करोड़ की लागत दर्जनों कमरे वाली बिल्डिंग अस्पताल को सौंपी गयी. यह सभी प्रकार के संसाधन से परिपूर्ण है. डॉक्टरों के लिए अलग-अलग वातानुकूलित कमरा, मेडिकल स्टोर, मरीजों के भर्ती के लिए कमरा, ऑपरेशन थिएटर आदि मौजूद हैं. एंबुलेंस कार्य में तत्पर है. दवाओं की कोई कमी नहीं है. लेकिन, पर्याप्त डॉक्टर नहीं हैं. अस्पताल में एक एमबीबीएस और दो आयुष डॉक्टर, जो अतिरिक्त प्राथमिकी स्वास्थ्य केंद्र में नियुक्त हैं. इनमें एमबीबीएस डॉक्टर अस्पताल के प्रभारी हैं. उन्हें अस्पताल व्यवस्था व मीटिंग आदि से फुर्सत मिलती है, तो ओपीडी में बैठते हैं. उनकी अनुपस्थिति में आयुष डॉक्टर ही मरीजों का इलाज करते हैं. मरीज भी काफी संख्या में अस्पताल पहुंचते हैं. प्रतिमाह सौ मरीजों से अधिक का औसत है. अस्पताल में एक भी महिला चिकित्सक नहीं हैं. लेकिन, प्रतिमाह 70 से 80 गर्भवती महिलाओं का प्रसव कराया गया. हैरान करनेवाली बात है कि बिना महिला चिकित्सक के काफी संख्या में गर्भवती महिलाओं का प्रसव कराया गया. ऐसा कर पाना मुश्किल काम है और खतरा भी अधिक है. गर्भवती महिलाओं का प्रसव कराने का जिम्मा एनएम को सौंपा गया है. वे बखूबी संभाल रही हैं. एक्सीडेंटल केस में ज्यादा दिक्कत होती है. ऐसे मामले प्राथमिक उपचार कर बेहतर इलाज के लिए मरीजों को रेफर कर दिया जाता है, क्योंकि एक्सीडेंटल केस को देखने वाला कोई डॉक्टर नहीं है.

इस तरह स्थानांतरित होते रहे डॉक्टर

क्या कहते हैं पदाधिकारी

प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी जय कुमार ने बताया कि डॉक्टर की कमी है. यहां सीएचसी में डॉक्टरों की भारी कमी है. यहां आठ डॉक्टरों की आवश्यकता है. इसमें लेडीज डॉक्टर निश्चित होनी चाहिए, क्योंकि ओपीडी में महिलाएं या लड़कियां खुलकर बीमारी के बारे में नहीं बता पाती हैं. इससे उनका सही इलाज नहीं हो पाता है. अस्पताल में मैं अकेले डॉक्टर हूं और अस्पताल का प्रभार भी मिला है. ऐसे में काफी दिक्कत होती है. ऑफिस के काम में जाने पर आयुष डॉक्टर का सहारा लेना पड़ता है. एक सप्ताह में एक डॉक्टर को सात ड्यूटी करनी चाहिए, जबकि मैं एक सप्ताह में 16 से 18 ड्यूटी करता हूं प्रतिदिन 150 से अधिक मरीजों इलाज होता है. फरवरी माह में 80 महिलाओं का प्रसव हुआ है.

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