320 वर्ष पूर्व हुआ था कर्बला का निर्माण, मुहर्रम में जियारत के लिए दूर-दूर से आते हैं जायरीनउत्तर प्रदेश के लखनऊ के बाद बिहार के रोहतास जिले के तिलौथू प्रखंड के सरइयां में है कर्बला
प्रतिनिधि, डेहरी.
मुहर्रम के दौरान सरैया गांव का यह प्राचीन कर्बला लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बना रहता है. वैसे तो जहां भी मुस्लिम बस्तियां बसती हैं, वहां मुहर्रम मनाने के लिए एक कर्बला का निर्माण कराया जाता है. किंतु, प्रखंड के सरैया ग्राम स्थित कर्बला का महत्व शियाओं के लिए मरकज के तौर पर माना जाता है. वर्षों से कर्बला में स्थित इमाम बारगाह का करीब एक सौ वर्षों से मुतवल्ली रहे अब्दुल गनी खानदान के पौत्र अली अहमद उर्फ राजू बताते हैं कि करीब 340 वर्ष पूर्व यहां कर्बला का निर्माण इराक से आये ताजिर ने कराया था. वह धीरे-धीरे विकसित होते हुए आज समस्त बिहार प्रदेश के शिया समुदाय के लिए मरकज बन गया है. उन्होंने बताया कि जिस प्रकार से इराक के बगदाद में इमाम हुसैन के कर्बला के नजदीक फोरात की नदी बहती है, उसी प्रकार से यहां इस कर्बला के ठीक सौ गज की दूरी पर सोन नदी बहती है, जो इराक के कर्बला की याद दिलाती है. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में लखनऊ के कर्बला की जैसी बिहार में सरैया के कर्बला की मान्यता है.
औरंगजेब के शासनकाल से पहले का इतिहासमुगल बादशाह औरंगजेब के शासनकाल से पहले से ही सरैया गांव का नाम तारीख-ए-रोहतास में पढ़ने को मिलता है. तारिख-ए-रोहतास में उल्लेखित है कि सरैया बस्ती का औरंगजेब के समय में सराय के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था. यहां सैनिकों का जमावड़ा लगा रहता था. वर्षों पुरानी कब्रें इस बात की गवाह हैं कि यहां मुगल काल से लोगों का आना-जाना लगा है. इस बस्ती का नाम औरंगजेब के समय में औरंगाबाद सरैया रखा गया था. दशक भर पहले भी इस नाम का प्रचलन था, लेकिन बाद के दिनों में चुनाव परिसीमन के दौरान इस बस्ती का नाम सरैया पंचायत ही रख दिया गया.
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