देश-विदेश में फैली है भद्रकाली मंदिर की ख्याति
इटखोरी प्रखंड मुख्यालय से मात्र आधा किमी की दूरी पर है भद्रकाली मंदिर. पहाड़ों व जंगलों से घिरा एवं महानद यानी महाने नदी के तट पर स्थित भद्रकाली मंदिर की ख्याति देश-विदेश तक है. इसकी लोकप्रियता की वजह 9वीं शताब्दी का मां भद्रकाली मंदिर परिसर है. इसकी मूर्तियां क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के तौर पर एक साक्ष्य के रूप में हैं.
नवरात्र में मां की अराधना करने से पूरी होती है हर मनोकामना
भद्रकाली मंदिर में नवरात्र की पूजा सदियों से होती आ रही है. मान्यता है कि नवरात्र के समय जो भी कलश स्थापित कर दुर्गा सप्तशती का पाठ करता है, उसकी हर मनोकामना पूरी होती है. यहां प्राचीन काल में भी कई ऋषि-मुनियों व राजा-महाराजाओं ने नवरात्र में साधना कर मोक्ष की प्राप्ति की थी.
तीन धर्मों का संगम स्थल
भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा की गयी खुदाई में हिंदू, बौद्ध व जैन धर्म से जुड़े कई पुरातात्विक अवशेष प्राप्त हुए हैं. इसलिए यह स्थल तीनों धर्मों का अनूठा संगम स्थल भी माना जाता है. इसके आसपास गुप्तकालीन अवशेष की प्राप्ति हुई है, जिनमें से बुद्ध संबंधी प्रस्तर प्रतिमा मिली है. इस कारण इटखोरी का महत्व बौद्ध मतावलंबियों के लिए बढ़ गया है.
Also Read: Durga Puja: झारखंड के इस शक्तिपीठ में 16 दिनों तक मनाया जाता है शारदीय नवरात्र, हजारों वर्षों पुराना है इतिहास