Shravani Mela 2025: ‘बम बम भोले’ के जयकारे से गूंजेगा बाबा धाम, 11 जुलाई से होगी भव्य श्रावणी मेले की शुरुआत

Shravani Mela 2025: देवघर में 11 जुलाई से श्रावणी मेला की शुरुआत होगी. इसके साथ ही बाबा नगरी की रौनक बढ़ जायेगी. बम बम भोले के जयकारे से शहर गूंज उठेगा. श्रद्धालु बाबा पर जलार्पण कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करेंगे. श्रद्धालुओं की यात्रा आराधना से जुड़े, अव्यवस्था से नहीं. इसका ध्यान रखा जायेगा.

By Rupali Das | July 3, 2025 11:55 AM
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Shravani Mela 2025: देवघर स्थित बाबा धाम में सावन माह के शुरू होते ही भक्तों की भीड़ उमड़ेगी. 11 जुलाई से भव्य श्रावणी मेले की शुरुआत होगी. इसे लेकर जिला और मंदिर प्रशासन ने तैयारी पूरी कर ली है. मेले में श्रद्धालुओं की सुरक्षा और सुविधाओं का विशेष ध्यान रखा जाएगा. 11 जुलाई से बाबा का स्पर्श पूजन भी बंद हो जायेगा. भक्त अरघा के माध्यम से भोलेनाथ पर जलार्पण करेंगे. मेले के दौरान मंदिर के पुरोहित रवि पांडे को व्यवस्था में कुछ बदलाव की उम्मीद है.

बाबा नगरी की रौनक बढ़ती है

तीर्थ पुरोहित रवि पांडे ने श्रावणी मेला को लेकर कहते हैं कि सावन आते ही बाबा नगरी देवघर की रौनक बढ़ जाती है. देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु कांवर लेकर बाबाधाम पहुंचते हैं. उनके कदमों की थकान को ओम नमः शिवाय का जाप सुकून देता है. लेकिन, यही जाप व्यवस्था के शोर में दब जाये, तो आस्था भी परेशान हो उठती है. इसलिए व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि चाहे आम कतार हो या कूपनधारी कतार, बाबा का ध्यान करते हुए सहज भाव से हर कांवरिया जलार्पण कर सके.

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कांवरियों के लिए कठिन सफर

पुरोहित ने कहा कि हर साल व्यवस्था में बदलाव की बातें होती हैं, लेकिन इससे जुड़ी कुछ पुरानी पीड़ा अब भी जस की तस हैं. सबसे बड़ी समस्या मंदिर का पट कब बंद होता है, इसकी जानकारी श्रद्धालुओं को नहीं हो पाता है. कई कांवरिये वर्षों से चली आ रही परंपरा की तरह सोचकर मान लेते हैं कि शाम पांच बजे पट बंद हो जायेगा और कतार में नहीं लगते. अगली सुबह जब पहुंचते हैं, तो कतार का अंतिम छोर 10 किमी दूर होता है. थक चुके कांवरियों के लिए यह सफर बेहद कठिन हो जाता है.

इन जानकारियों को करें साझा

रवि पांडे ने बताया कि कांवर यात्रा करने वाले अधिकतर लोग पारंपरिक कांवर चढ़ाते हैं. यानी यह उनके पूर्वजों की श्रद्धा और परंपरा का हिस्सा है. जब ऐसा जत्था लौटता है, तो वह व्यवस्था की तारीफ या शिकायत, दोनों साथ लेकर जाता है. उनका अनुभव अगली पीढ़ी को रास्ता दिखाता है. इसीलिए जरूरी है कि मंदिर प्रशासन पट बंद होने, जलार्पण का समय और बाबा के श्रृंगार पूजा की विस्तृत जानकारी का प्रचार-प्रसार करे.

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आराधना से जुड़े भक्तों की यात्रा

तीर्थ पुरोहित कहते हैं कि आज भी बाबा धाम की पहचान उसकी परंपरा और पूजा पद्धति से ही है. यहां के त्योहार, व्रत और उत्सव मंदिर से जारी तिथियों और समय के अनुसार मनाये जाते हैं. ऐसे में अगर सूचना सही और समय पर मिलेगी. तो परंपरा भी बचेगी और श्रद्धा को ठेस भी नहीं पहुंचेगी. श्रद्धालु सुखद अनुभव लेकर लौटें, इसके लिए जरूरी है कि उनकी यात्रा आराधना से जुड़ी रहे, अव्यवस्था से नहीं. तभी बाबा नगरी की पहचान विश्व पटल पर और मजबूत होगी.

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