मधुपुर. शहर के पंचमंदिर रोड स्थित एक निजी आवास परिसर में सोमवार को झारखंड बंगाली समिति मधुपुर शाखा के सदस्यों ने असम भाषा आंदोलन के शहीदों के लिए श्रद्धांजलि सभा कार्यक्रम का आयोजन किया. इस अवसर पर सदस्यों ने कैंडल जलाकर शहीदों को नम आखों से स्मरण किया. वहीं, बंगाली समिति के प्रदेश अध्यक्ष विद्रोह कुमार मित्रा ने कहा कि भाषा किसी समुदाय की असली पहचान है, उसे रक्षा करना हमारी कर्तव्य है. असम सरकार ने एक कानून पारित करके बराक घाटी के बंगाली आबादी वाले जिले यानी कछार, करीमगंज व हैलीकांडी समेत असम की एक मात्र आधिकारिक भाषा असमिया बनाने का प्रस्ताव रखा था. सरकार के इस कदम के खिलाफ 19 मई 1961 को सामूहिक धरना देने के लिए बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी तारापुर के सिलचर रेलवे स्टेशन पर एकत्र हुए थे. असम राइफल्स ने निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलायी, जिसमें नौ लोग मौके पर ही मारे गए और दो ने बाद में दम तोड़ दिया. जिसमें कन्हाईलाल नियोगी, चंडीचरण सूत्रधार, हितेश विश्वस, सत्येन्द्र देव, कुमुद रंजन दास, सुनील सरकार, तारणी देवनाथ, सचिनद्र चंद्र पाॅल, बीरेन्द्र सूत्रधार, सुकमल पुरकायस्थ व कमला भट्टाचार्जी ने अपनी जान गंवा दी. वहीं, शाखा अध्यक्ष डॉ आशीष कुमार सिन्हा ने कहा कि बराक घाटी के ज्यादातर निवासी बंगाली बोलते थे. घाटी के लगभग 80 प्रतिशत निवासियों का भाषा बंगला है. 19 मई को महज असमिया बंगाली टकराव के संकीर्ण नजरिये से नहीं बल्कि एक बहुभाषी राज्य में सभी भाषाओं के समान अधिकारों के लिए संघर्ष के रूप में देखा जाना चाहिए. इसके अलावा उन बलिदानियों को उचित श्रेय दिया जाना चाहिए जो शरणार्थी होने के बावजूद अपनी भाषा से प्रेम के लिए लड़े और प्राण न्योछावर कर दिया. मौके पर प्रदीप कुमार भादुड़ी, अमूल्य दे, अनूप कुमार सिन्हा, मणीमाला मित्रा, डॉ सुखेंद्र देब मन्ना, दिलीप राय, साधना मुखर्जी, शांति रंजन मुखर्जी आदि मौजूद थे.
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