मधुपुर. शहर के बावनबीघा स्थित सांख्य योग साधना के लिए विश्व प्रसिद्ध कापिल मठ में शनिवार को मठ का वार्षिक उत्सव मनाया गया. वर्षों से गुफा में साधनारत सद्गुरु स्वामी भाष्कर आरण्य ने सुबह व शाम गुफा से निकल कर श्रद्धालुओं को दर्शन दिये. इस दौरान गुफा द्वार पर बैठकर ही शिष्यों के साथ सामूहिक पाठ में शामिल हुए. ओम आदि विदुषे कपिलाय नमः से पूरा मठ गुंजायमान होता रहा. उत्सव में बिहार, बंगाल, झारखंड, असम उड़ीसा, दिल्ली, महाराष्ट्र आदि प्रदेश से आये सैकड़ों श्रद्धालु वार्षिकोत्सव में शामिल हुए. हजारों लोगों ने बगैर भेदभाव के जमीन पर बैठकर खिचड़ी, सब्जी, बुंदिया आदि प्रसाद पाया. बताते चले कि सांख्य योगाचार्य स्वामी हरिहरानंद आरण्य ने वर्ष 1926 में मठ की स्थापना की थी. स्वामीजी बंगाल के जमींदार परिवार से थे. ईश्वर प्राप्ति के लिए गृह त्याग कर संयास ले लिया था. आचार्य स्वामी जी शुरुआती सन्यासी जीवन एक विरान पहाड़ी एकांत में गुजारे. जहां उनकी संपत्ति में केवल एक कंबल, एक तौलिया और एक कमंडल था. अपने लक्ष्य की प्राप्ति के बाद आध्यात्मिक अभ्यास त्रिवेणी वाराणसी, हरिद्वार, ऋषिकेश समेत कुछ स्थानों में गये. अंत में मधुपुर में आकर मठ की स्थापना की. सांख्य तत्व में लीन होकर कुछ बंगला और संस्कृत भाषा में पुस्तकों की रचना की जो अत्योत्म, तार्किक और हृदयस्पर्शी है. स्वामी जी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर कुछ सत्यानुसंधानी लोगों ने अपने गुरु का स्थाई निवास के रूप में एक कृत्रिम गुफा का निर्माण कराया, जिसमें मात्र एक प्रवेश द्वार है. स्वामीजी गुफा में अंतिम क्षण बिताये. सन् 1947 में स्वामीजी ले कापिल मठ में समाधि ली. स्वामी जी कहते थे सांख्य योग ही ईश्वर प्राप्ति का मार्ग है. भारत में सांख्य योग साधना पर आधारित मधुपुर का एकलौता मठ है. इसकी एक शाखा दार्जिलिंग के कास्यांग में है. बाद के दिनों में स्वामी धर्ममेघ आरण्य ने यहां चल रही साधना परंपरा को समृद्ध किये. स्वामी धर्ममेघ आरण्य की महासमाधि के बाद वर्तमान में सद्गुरु योगाचार्य स्वामी भाष्कर आरण्य परंपरा को अनवरत बनाए हुए हैं.
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