Mahadev Puja|Shravani Mela 2025: तीनों लोकों के देव देवाधिदेव महादेव की पूजा अर्चना की परंपरा पौराणिक काल से चली आ रही है. वैदिक ग्रंथ हों या पौराणिक ग्रंथ सभी काल के वाङ्गमय में शिव की पूजन की परंपरा का उल्लेख किसी न किसी रूप में मिलता है. शिव और शक्ति का संगम जगत को जीवंत रखते आया है, तभी तो लोक में पूजा-अर्चना का प्रवाह कम नहीं हो रहा है. वर्तमान समय में शिव के प्रति आस्था का जो सैलाब दिखता है, वह अनुभूति योग्य है. शिव पूजन में सादगी का भाव हर भक्त में होता है. किसी भी रूप में देवाधिदेव का नाम अगर मुख से उच्चरित होता है, तो शीघ्र प्रसन्न हाेने वाले देव आशुतोष उनके संपूर्ण गुनाहों को माफ कर डालते हैं.
पुराणों में बतायी गयी है सावन में शिव पूजन की महत्ता
पवित्र सावन में तो शिव पूजन का विशेष महत्व पौराणिक आख्यानों में वर्णित है, जिसका सतत निर्वहण लोक में नर-नारी कर रहे हैं. भक्ति भाव से विभोर होकर कांवर के माध्यम से बाबा अजगैबीनाथ मंदिर के तट अजस्र प्रवाहित उत्तरवाहिणी गंगा जला पात्र में लेकर चलते हैं एवं बोल बम के जयकारों के साथ पैदल चल कर बाबा बैद्यनाथ की पावन धरती पर आते हैं एवं जलाभिषेक कर मन्नतें मांगते हैं. एक वेश और एक बोल की झांकी परिलक्षित होती है, जो अद्भुत भाईचारा का संदेश छोड़ रहा है.
Shravani Mela 2025: भगवान शंकर को मिली है चंद्रमौलि की संज्ञा
कांवर यात्रा के दौरान मन में एक ही स्मरण संजोये रखता है कि मन में जो संकल्प लिये हैं, उसे पूर्ण करके ही दम लेंगे. वाकई में भाग-दौड़ के समय में भक्तों का जो सैलाब बाबा बैद्यनाथ को जल चढ़ाने के लिए उमड़ता है, वह कोई साधारण बात नहीं है, बल्कि आध्यात्मिक शक्तियों के साक्षात देवदूत के रूप में उनका अवतरण माना जाता है. भक्ति का सागर मन में लिये चलते हैं और अपने को भक्त तुच्छ प्राणी समझता है. चंद्रमौलि की संज्ञा शिव को दी गयी है, क्योंकि मस्तक पर चंद्र सुशोभित है.
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संसार रूपी घोर सागर से एकमात्र तारणहार हैं महादेव
संसार रूपी घोर सागर से तारने के लिए शंकर यानि देवाधिदेव महादेव ही एक नौका है. इसी नौका पर सवार होकर मानव सागर को पार करने की तमन्ना लिये आराधना करते हैं. गरीब हों या अमीर, समर्थ हों या लाचार, नर हों या नारी, बालक हों या बालिका, बुजुर्ग हों या युवा सभी के प्राण में शिव रोम रोम में विराजमान हैं. तभी तो कांवर लिए भक्त एक दूसरे को …हे बम, बोल बम की ध्वनि से पुकारते हैं. कांवर यात्रा के दौरान अपने को तुच्छ शरीधारी भक्त कहते हैं एवं शिव भक्ति के समक्ष अपने को समर्पित कर देते हैं. किसी भी प्रकार की भूल चूक होती है, तो उसके लिए क्षमा याचना कर डालते हैं.
मंत्रहीनं क्रियाहींनं भक्तिहीनं सुरेश्वर: ।
यत्पूजितं मया देव परिपूर्णं तदस्तु मे ।।
संसार रूपी घोर सागर से तारणहार सिर्फ शंकर यानी देवाधिदेव महादेव ही हैं. इसी नौका पर सवार होकर भव सागर को पार करने की इच्छा लिये भक्त शिव की आराधना करते हैं. गरीब हों या अमीर, सामर्थ्यवान हों या लाचार, नर हो या नारी सभी के प्राण , रोम-रोम में शिव विराजमान हैं. तभी तो कांवर लिये भक्त एक दूसरे को …हे बम, बोल बम कहकर पुकारते हैं.
मां सरस्वती भी नहीं कर पायीं शिव की महिमा का वर्णन
भक्ति में देवाधिदेव के प्रति जो प्रीत का दीदार होता है, वह वर्णन से परे माना जाता है. पौराणिक आख्यानों के अनुसार, शिव की महिमा का वर्णन विद्या की देवी माता सरस्वती भी नहीं कर पायी है, तो साधारण मानव क्या कर सकते हैं. महान देव महेश की शक्तियाें को कोई भी अन्य मानवीय शक्तियां डोर या पाश से बांध नहीं सकती है. अजस्र, अवर्णनीय, अदृश्य और काल से परेश हैं देवाधिदेव महादेव. सृष्टि को चलाने से लेकर संहार करने तक की शक्तियां इसमें सन्निहित हैं. ऋषि मुनियों ने तो अपना जीवन तप में खूब तपाया, तभी तो कुछ दिव्य ज्ञान उन्हें प्राप्त हुआ और संहिता में संरक्षित करने का काम किये हैं, जो आज कसौटी पर खरी है.
न यस्य कालो न च बंधमुक्ती
न य: पुमान्न प्रकृतिर्न विश्वम्।
विचित्र रुपाय शिवाय तस्मै
नम: परस्मै परमेश्वराय ।।
नम: शिवाय के उच्चारण से मिट जाते हैं शिवभक्तों के दुख
कहने का तात्पर्य है कि जिसे न तो काल यानी समय के बंधन में बांधा जा सकता है और न मुक्त किया जा सकता है. वह दिव्य अदृश्य शक्तिधारी हैं. देवाधिदेव महादेव की लोग विभिन्न रूपों में भक्ति करते हैं और अपने को अहोभाग्य समझते हैं. सोते समय या जागते समय या फिर किसी भी कार्य में अगर अपने को लगा रखे हैं, तो वैसी स्थिति में भी शिव के नाम का उच्चारण करते हैं, तो जीवन मोक्ष की तरह हो जाता है. ‘नम: शिवाय’ – पंचाक्षर मंत्र का जप शिवभक्त करते रहते हैं, जो सबसे सरल व फलदायक मंत्र है. कांवर लाते समय इस पंचाक्षर मंत्र के उच्चारण से सारे दुख मिट जाते हैं और शिवभक्तों का मन प्रसन्न हो उठता है.
त्रिनेत्रधारी, जटाधारी समेत अनेक नाम हैं महादेव के
इन्हें महेश, त्रिनेत्रधारी, जटाधारी, पिनाकपाणि, शंभु, गिरीश, हर, शंकर, चंद्रमौलि, विश्वेश्वर, अंधकरिपु, पुरसूदन, त्रिशुलधारी आदि नामों से पौराणिक ग्रंथों में ऋषि मनीषियों ने अभिभूषित किया गया है, जो आज भी प्रचलित है. कूर्म पुराण में अख्यायित है-
ब्रह्मा कृतयुगै देवस्त्रेतायां भागवान रवि : ।
द्वापरे देवतं विष्णु: कालौ देवो महेश्वर: ।।
सूत संहिता में भी है शिव की महिमा का उल्लेख
शिव की महिमा का उल्लेख सूत संहिता में भी मिलता है-
न च नामानि रुपाणि शिवस्य परमात्मन: ।
तथापि मायया तस्य नाम रुपे प्रकल्पिते ।।
शिवो रुद्रो महादेव: शंकरो ब्रह्मसत् परम ।
एवमादीनि नामानि विशिष्टानि परस्य तु ।।
ऋग्वेद काल में है रुद्र देव का उल्लेख
ऋग्वेद काल में रुद्र देव का उल्लेख मिलता है. इसे ही शिव, महादेव, शंकर आदि नामों से लोक में जानते हैं और पूजा अर्चना अनवरत भक्त करते रहते हैं. शिव ही काल माया और कर्म के पाशों में आवद्ध प्राणियों के पति ही पशुपति हैं, जो सर्वज्ञ हैं, समदर्शी हैं और सर्वदुख निवारणकर्ता हैं. तभी तो शिव पूज में किसी भी काल में कमी नहीं आयी है. वर्तमान समय में तो शिव भक्ति का प्रचलन और भी अधिक हुआ है. शिव के साथ माता पर्वती की पूजा करने से भक्त चूकते नहीं हैं. शिव का विशद स्वरुप पौराणिक ग्रंथों में मिलता है, वह कतई नकारा नहीं जा सकता है.
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