Table of Contents
- Shravani Mela 2025: ज्योतिर्लिंगों से जुड़ा है सृष्टि का सारा रहस्य
- सुबह एक बार 12 ज्योतिर्लिंगों का नाम लेने से सारे काम बन जायेंगे
- Shravani Mela 2025: सोमनाथ धरती का पहला ज्योतिर्लिंग
- राजा दक्ष ने चंद्रमा को दिया क्षय रोग का शाप
- राजा दक्ष के शाप से तुरंत धूमिल हो गये चंद्रमा
- चंद्रमा ने सोमनाथ में महामृत्युंजय से किया पूजन
- भगवान भोलेनाथ ने चंद्रमा को खुश कर दिया
- शिव के उपाय से प्रसन्न हुए चंद्रमा, करने लगे स्तुति
- चंद्रमा की स्तुति से सोमनाथ में शिव निराकार से साकार हुए
- सोमनाथ की स्थापना के बाद देवताओं ने उनकी पूजा की
- सोमनाथ कुंड में है शिव और ब्रह्मा का साक्षात निवास
- सोमनाथ के दर्शन नहीं कर पाते, तो उनकी उत्पत्ति की कथा सुनें
- सोमनाथ में पंचामृत से होती है शिव की पूजा
- शिवरात्रि की रात महामृत्युंजय के जप का है विशेष महत्व
- शीतल हैं चंद्रमा, शिव जगत के सार, इसलिए खत्म होते हैं तनाव
Shravani Mela 2025| Shiva Mahima|ये पूरा जगत शिवमय है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि क्यों होती है शिवलिंग की पूजा? क्या आप सही मायने में शिवलिंग का रहस्य जानते हैं? शिव का असली स्वरूप क्या है? क्या शिव ही इस जगत के आधार हैं? क्या हुआ था, जब पहली बार विधाता ने इस सृष्टि की रचना शुरू की थी?
ज्योतिर्लिंगों से जुड़ा है सृष्टि का सारा रहस्य
दरअसल, सृष्टि का सारा रहस्य शिव के ज्योतिर्लिंगों से जुड़ा है. हर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी है मनोरथ और सिद्धि की तमाम सीढ़ियां, लेकिन पहले जानते हैं कि शिव कौन हैं? कैसे धारण करते हैं, वो इस जगत को? कैसे देवी भगवती शक्ति बनकर हमेशा उनके साथ रहती हैं?
सुबह एक बार 12 ज्योतिर्लिंगों का नाम लेने से सारे काम बन जायेंगे
कहते हैं कि एक राजा थे. उनकी 27 कन्याएं थीं. उनकी शादी होती है. एक कन्या की वजह से सारी कहानी बदल जाती है. उस कन्या का प्यार चंद्रमा के लिए शाप का विषय बनता है. फिर उत्पन्न होता है, शिव का पहला ज्योतिर्लिंग. देश में शिव के जो 12 ज्योतिर्लिंग हैं, उनके बारे में मान्यता है कि अगर सुबह उठकर सिर्फ एक बार भी बारहों ज्योतिर्लिंगों का नाम ले लिया जाये, तो सारा काम हो जाता है.
Shravani Mela 2025: सोमनाथ धरती का पहला ज्योतिर्लिंग
सोमनाथ का ज्योतिर्लिंग इस धरती का पहला ज्योतिर्लिंग है. इस ज्योतिर्लिंग की महिमा बड़ी विचित्र है. शिव पुराण की कथा के हिसाब से प्राचीन काल में राजा दक्ष ने अश्विनी समेत अपनी सत्ताईस कन्याओं की शादी चंद्रमा से की थी. 27 कन्याओं का पति बनके चंद्रमा बेहद खुश हुए. कन्याएं भी चंद्रमा को वर के रूप में पाकर अति प्रसन्न थीं. ये प्रसन्नता ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकी.
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राजा दक्ष ने चंद्रमा को दिया क्षय रोग का शाप
कुछ दिनों के बाद चंद्रमा उनमें से एक रोहिणी पर ज्यादा मोहित हो गये. ये बात जब राजा दक्ष को पता चली, तो वो चंद्रमा को समझाने गये. चंद्रमा ने उनकी बातें सुनीं, लेकिन कुछ दिनों के बाद फिर रोहिणी पर उनकी आसक्ति और प्रबल हो गयी. जब राजा दक्ष को ये बात फिर पता चली, तो वो गुस्से में चंद्रमा के पास गये. उनसे कहा, ‘मैं तुमको पहले भी समझा चुका हूं. लगता है कि तुम पर मेरी बातों का असर नहीं होने वाला. इसलिए मैं तुम्हें शाप देता हूं कि तुम क्षय रोग के मरीज हो जाओ.’
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राजा दक्ष के शाप से तुरंत धूमिल हो गये चंद्रमा
राजा दक्ष के इस श्राप के तुरंत बाद चंद्रमा क्षय रोग से ग्रस्त होकर धूमिल हो गये. उनकी रौशनी जाती रही. ये देखकर ऋषि-मुनि बहुत परेशान हुए. इसके बाद सारे ऋषि-मुनि और देवता इंद्र के साथ भगवान ब्रह्मा की शरण में गये. फिर ब्रह्मा जी ने उन्हें एक उपाय बताया. उपाय के हिसाब से चंद्रमा को सोमनाथ के इसी जगह पर आना था. भगवान शिव का तप करना था और उसके बाद ब्रह्मा जी के हिसाब से भगवान शिव के प्रकट होने के बाद वो दक्ष के शाप से मुक्त हो सकते थे.
चंद्रमा ने सोमनाथ में महामृत्युंजय से किया पूजन
चंद्रमा सोमनाथ के पास पहुंचे. भगवान वृषभध्वज का महामृत्युंजय मंत्र से पूजन किया. फिर 6 महीने तक शिव की कठोर तपस्या करते रहे. चंद्रमा की कठोर तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए. उनके सामने प्रकट हुए और वर मांगने को कहा. चंद्रमा ने वर मांगा कि हे भगवन, अगर आप खुश हैं, तो मुझे इस क्षय रोग से मुक्ति दीजिए और मेरे सारे अपराधों को क्षमा कर दीजिए.
भगवान भोलेनाथ ने चंद्रमा को खुश कर दिया
भगवान शिव ने कहा कि तुम्हें जिसने शाप दिया है, वो भी कोई साधारण व्यक्ति नहीं है, लेकिन मैं तुम्हारे लिए कुछ करूंगा जरूर. इसके बाद भगवान शिव ने चंद्रमा के साथ जो किया, उसे देखकर चंद्रमा न ज्यादा खुश हो सके और न ही उदास रह सके. चंद्रमा की तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न थे.
शिव के उपाय से प्रसन्न हुए चंद्रमा, करने लगे स्तुति
इसलिए चंद्रमा के लिए शिव एक रास्ता निकालते हैं. चंद्रमा से कहते हैं कि मैं तुम्हारे लिए ये कर सकता हूं कि एक माह में जो 2 पक्ष होते हैं, उसमें से एक पक्ष में तुम निखरते जाओगे, लेकिन दूसरे पक्ष में तुम क्षीण भी होओगे. ये पौराणिक राज है चंद्रमा के शुक्ल और कृष्ण पक्ष का, जिसमें एक पक्ष में वो बढ़ते हैं और दूसरे में घटते जाते हैं. भगवान शिव के इस वर से भी चंद्रमा काफी प्रसन्न हुए. उन्होंने भगवान शिव का आभार प्रकट किया. उनकी स्तुति की.
चंद्रमा की स्तुति से सोमनाथ में शिव निराकार से साकार हुए
यहां पर एक बड़ा अच्छा रहस्य है. अगर आप साकार और निराकार शिव का रहस्य जानते हैं, तो आप इसे समझ जायेंगे, क्योंकि चंद्रमा की स्तुति के बाद इसी जगह पर भगवान शिव निराकार से साकार हो गये थे. साकार होते ही देवताओं ने उन्हें यहां सोमेश्वर भगवान के रूप में मान लिया. यहां से भगवान शिव तीनों लोकों में सोमनाथ के नाम से विख्यात हुए.
सोमनाथ की स्थापना के बाद देवताओं ने उनकी पूजा की
शिव जब सोमनाथ के रूप में स्थापित हो गये, तो देवताओं ने उनकी पूजा की ही, चंद्रमा को भी नमस्कार किया. चंद्रमा की वजह से ही शिव का ये स्वरूप इस जगह पर मौजूद है. समय गुजरा. इस जगह की पवित्रता बढ़ती गयी. शिव पुराण में कथा है कि जब शिव सोमनाथ के रूप में यहां निवास करने लगे, तो देवताओं ने यहां एक कुंड की स्थापना की. उस कुंड का नाम रखा गया सोमनाथ कुंड.
सोमनाथ कुंड में है शिव और ब्रह्मा का साक्षात निवास
कहते हैं कि इस सोमनाथ कुंड में भगवान शिव और ब्रह्मा का साक्षात निवास है. इसलिए जो भी उस कुंड में स्नान करता है, उसके सारे पाप धुल जाते हैं. उसे हर तरह के रोगों से निजात मिल जाती है. शिव पुराण में लिखा है कि असाध्य से असाध्य रोग भी कुंड में स्नान करने के बाद खत्म हो जाते हैं. साथ ही एक विधि है, जिसका पालन करना पड़ता है. अगर कोई व्यक्ति क्षय रोग से ग्रसित है, तो उसे उस कुंड में लगातार 6 माह तक स्नान करना होगा. ये महिमा है सोमनाथ की.
सोमनाथ के दर्शन नहीं कर पाते, तो उनकी उत्पत्ति की कथा सुनें
शिव पुराण में ये भी लिखा है कि अगर किसी वजह से आप सोमनाथ के दर्शन नहीं कर पाते हैं, तो सोमनाथ की उत्पत्ति की कथा सुनकर भी आप वही पौराणिक लाभ उठा सकते हैं. इस तीर्थ में और भी तमाम मुरादें पूरी होतीं हैं, क्योंकि यह तीर्थ बारह ज्योतिर्लिंगों में से सबसे महत्वपूर्ण है. धरती का सबसे पहला ज्योतिर्लिंग सौराष्ट्र में काठियावाड़ नाम की जगह पर है.
सोमनाथ में पंचामृत से होती है शिव की पूजा
इस मंदिर में जो सोमनाथ देव हैं, उनकी पूजा पंचामृत से की जाती है. कहा जाता है कि जब चंद्रमा को शिव ने शापमुक्त किया, तो उन्होंने जिस विधि से साकार शिव की पूजा की थी, उसी विधि से आज भी सोमनाथ की पूजा होती है. यहां जाने वाले जातक अगर 2 सोमवार भी शिव की पूजा को देख लेते हैं, तो उनके सारे मनोरथ पूरे हो जाते हैं. अगर आप सावन की पूर्णिमा में कोई मनोरथ लेकर आते हैं, तो भरोसा रखिए, उसके पूरा होने में कोई विलंब नहीं होगा.
शिवरात्रि की रात महामृत्युंजय के जप का है विशेष महत्व
अगर आप शिवरात्रि की रात यहां महामृत्युंजय मंत्र का महज 108 बार भी जाप कर लेते हैं, तो वो सारी चीजें आपको हासिल हो सकती हैं, जिसके लिए आप परेशान हैं. ये है धरती के सबसे पहले ज्योतिर्लिंग की महिमा. शिव पुराण में ये कथा महर्षि सूरत जी ने दूसरे ऋषियों को सुनायी है.
शीतल हैं चंद्रमा, शिव जगत के सार, इसलिए खत्म होते हैं तनाव
कहा जाता है कि जो जातक इस कथा को ध्यान से सुनते हैं या फिर सुनाते हैं, उन पर चंद्रमा और शिव दोनों की कृपा होती है. चंद्रमा शीतलता के वाहक हैं. उनके खुश होने से इंसान मानसिक तनाव से दूर होता है. शिव इस जगत के सार हैं. उनके खुश होने से जीवन के सारे मकसद पूरे हो जाते हैं.
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