सुहागिनों का पावन वट सावित्री पूजा सोमवार को है. ज्येष्ठ माह कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि को वट सावित्री व्रत रखा जाता है. इसी दिन सावित्री अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से लौटा लायी थी. तभी से सुहागिनें अखंड सुहाग के लिए वट सावित्री का व्रत रखकर वट देवता की पूजा करती हैं. उनसे अखंड सुहाग के लिए प्रार्थना करती हैं. वट सावित्री पूजा को लेकर विवाहिताओं में उत्साह है.
बांस का पंखा होता है जरूरी
वट सावित्री पूजा में बांस का पंखा जरूरी होता है. बाजार में यह 40-50 रुपये में मिल रहा है. वहीं सुहाग का प्रतीक कांच की चूड़ियों के लिए भी बाजार में सुहागिनों की भीड़ उमड़ी. कांच की चूड़ियां 30-50 रुपये डब्बा तक बिकीं. सुहाग डाला 30 रुपये में बिका. इसके अलावा सुहाग सामग्री, आम, लीची, केला आदि मौसमी फलों की भी खूब बिक्री हुई. सुहागिनों ने हाथों में मेहंदी भी रचायी.
वट वृक्ष के फेरे लगाकर मांगती हैं दुआएं
वट सावित्री पूजा को लेकर सुहागिनें वट वृक्ष के नीचे एकत्रित होती हैं. अक्षत फूल चढ़ाकर मौसमी फल, मिठाई, चना का भोग लगाती हैं और बांस के पंखे से वट देव को हवा करती हैं. वट का पत्ता जुड़ा, चोटी में लगाती हैं. आरती के बाद वट सावित्री सत्यवान की कथा सुनती हैं. वट वृक्ष की परिक्रमा कर सुहाग की लंबी उमर व बेहतर स्वास्थ्य का आशीष मांगती हैं. पूजा के बाद वट देव से भूल चूक की क्षमा मांग कर घर लौटती हैं. पति को सुहाग डाला देकर पंखा से हवा करती हैं. मान्यता है जिस तरह पंखा झेलने से शीतल हवा मिलती है उसी तरह पति के जीवन में शीतलता बनी रहे.
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