जनश्रुति के मुताबिक महेश्वर नामक साधारण चरवाहे द्वारा मवेशियों को चराते वक्त पहली बार इस शिवलिंग को देखा गया था. लगभग दो फीट ऊंचाई तथा करीब डेढ़ फीट गोलाकार के इस शिवलिंग पर महाशिवरात्रि के दिन एवं पवित्र श्रावण महीने के अवसर पर शिवभक्त पश्चिम बंगाल के जंगीपुर से गंगाजल लाकर भोले बाबा का जलाभिषेक करते हैं. यहां आसपास के जिलों से शिवभक्त महाशिवरात्रि व श्रावण मास के समय प्रत्येक वर्ष काफी संख्या में जलाभिषेक के लिए आते हैं. महाशिवरात्रि के अवसर पर शिवभक्तों की उमड़ी भीड़ के बीच बाबा महेश्वरनाथ की छवि अति निराली देखी जाती है. इनकी अद्भुत महिमा को लेकर दर्जनों कहानियां प्रचलित हैं, जो इनके भक्तों की श्रद्धा को अटूट बनाए हुए हैं.
अतिवृद्ध लोगों का कहना है कि बहुत समय पहले एक बार महेशपुर में भीषण सुखाड़ पड़ा था. सब ओर से निराश लोगों ने सूखे से निजात पाने के लिए शिवलिंग को चारों ओर से घेर कर जल में डुबोने का प्रयास किया था. काफी प्रयास के बाद भी शिवलिंग नहीं डूबा मगर दूसरे ही दिन काफी बारिश हुई. जनश्रुति यह भी है कि पहली बार शिवलिंग के देखे जाने की खबर पाकर तत्कालीन समय के सुल्तानाबाद के नाम से जाना जाने वाला आज का महेशपुर के तत्कालीन राजाओं ने शिवलिंग को महल परिसर में स्थापित करने के उद्देश्य से लोहे की जंजीरों से बांधकर हाथियों द्वारा जमीन से निकालने का प्रयास किया था, जो असफल रहा था. पर शायद इसी वजह से शिवलिंग एक ओर थोड़ा-सा झुका हुआ है.
Also Read: Mahashivratri 2023: दो साल बाद निकलेगी शिव की भव्य बारात, झारखंडी संस्कृति की दिखेगी झलक