दुमका नगर. श्री अग्रसेन भवन में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा के चौथे दिन रविवार को कथा व्यास उमेश शास्त्री ने गजेंद्र मोक्ष की कथा सुनायी. कथा में उन्होंने बताया कि जब पद, प्रतिष्ठा और मान आता है तो व्यक्ति का अभिमान बढ़ जाता है. हाथी को जब गजेंद्र का पद मिल गया और जंगल का वह राजा बन गया तो उसमें भी अभिमान आ गया. उन्होंने आगे बताया कि हाथी अपने परिवार के साथ जल में क्रीड़ा कर रहा था तो एक मगरमच्छ ने आकर उसे पकड़ लिया और पूरा परिवार उसे छोड़कर चला गया और तभी उसे प्रभु की याद आयी. गजेंद्र के अनुरोध पर नारायण भगवान आए और ग्राह की गर्दन काटी. साथ ही उन्होंने समुद्र मंथन की कथा भी सुनायी. इसमें उन्होंने बताया कि प्रभु पर जो समर्पित वस्तु हो, उसे कभी भी पैर नहीं लगाना चाहिए. इंद्र ने प्रभु की माला अपने हाथी के पैर से कुचल दिया और इंद्र को श्रीहीन होना पड़ा. समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत को देवताओं ने पान किया और फिर से अपना राज्य असुरों से लिया. असुर वंश में एक राजा बलि हुए. उन्होंने अपनी गुरु सेवा, गौ सेवा और अतिथि सेवा के बल पर फिर से स्वर्ग पर चढ़ाई की और स्वर्ग को जीत लिया. वामन रूप में प्रभु ने आकर देवताओं को फिर से उनकी संपत्ति दिलायी. कथा व्यास ने कथा में आगे राम अवतार का सुंदर प्रसंग सुनाया और बताया कि यदि राम कथा जीवन में उतर जाए तो जीवन बड़ी सरलता से और सुखमय यापन किया जा सकता है. साथ ही नंद महोत्सव बड़े धूमधाम के साथ मनाया गया और लोगों ने नृत्य करते हुए इसका भरपूर आनंद उठाया.
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