सड़क दे दो, पानी दे दो, जिंदगी आसान कर दो

बड़तल्ला पंचायत खिलौड़ी गांव में प्रभात खबर आपके द्वार में ग्रामीणों ने सुनायी परेशानी, कहा

By RAKESH KUMAR | July 6, 2025 12:13 AM
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काठीकुंड (दुमका). काठीकुंड प्रखंड अंतर्गत बड़तल्ला पंचायत में स्थित एक छोटा-सा गांव है – खिलौड़ी. यह गांव नक्शे पर भले ही छोटा दिखाई देता हो, लेकिन यहां की समस्याएं और संघर्ष इतने बड़े हैं कि किसी भी जिम्मेदार शासन-प्रशासन को झकझोर सकते हैं. चार टोला प्रधान टोला, स्कूल टोला, चुनरभुई और बासकंदरी में बंटा यह गांव मुख्य रूप से आदिवासी और पहाड़िया समुदाय की आबादी से बसा हुआ है. चारों ओर घने जंगल और पहाड़ों के बीच बसी ये बस्तियां, जिनमें करीब 150 से अधिक परिवार आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. यह गांव आज भी उस सच्चाई का प्रतिनिधित्व करता है, जहां योजनाएं तो है पर उनके क्रियान्वयन की पहुंच इन पहाड़ों और जंगलों को पार नहीं कर सकी है. ग्रामीणों के अनुसार, अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की घोषणाएं केवल “सुनवाई ” तक सीमित है. जमीन पर आज भी बदलाव की कोई स्पष्ट तस्वीर नजर नहीं आती. देश और राज्य की सरकारें जहां “हर घर जल “, “प्रधानमंत्री सड़क योजना “, “स्वच्छ भारत “, “नल-जल योजना ” जैसी घोषणाएं करती हैं, वहीं खिलौड़ी गांव आज भी पेयजल, सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी जरूरी सुविधा से वंचित हैं. प्रभात खबर आपके द्वार के दौरान ग्रामीणों ने गांव की समस्याओं को पुरजोर तरीके से उठाया. कहा कि सड़क, पेयजल की व्यवस्था कर प्रशासन जिंदगी को असान बना दे. हमलोगों की यही मांग है. गांव तक जाने के लिए पक्की सड़क नसीब नहीं इस गांव तक पहुंचने का रास्ता जितना कठिन है, वहां रहना उससे भी अधिक चुनौतीपूर्ण है. चारों ओर से जंगल और पहाड़ों से घिरे इस क्षेत्र में आवागमन के लिए पक्की सड़कें नहीं हैं. बरसात में स्थिति और भी विकट हो जाती है. गांव के चारों टोला तक पहुंचने के लिए केवल पथरीली, फिसलनभरी और संकरी पगडंडियां ही एकमात्र साधन है. इन पगडंडियों पर बड़े-बड़े पत्थर बरसों से जमे हैं, जो न सिर्फ चलने में बाधा उत्पन्न करते हैं, बल्कि दुर्घटनाओं को भी आमंत्रित करते हैं. बरसात के मौसम में तो यह गांव जैसे बाहर की दुनिया से कट ही जाता है. गांव की फिसलन भरी सड़कों पर पैदल चलना तक ग्रामीणों के लिए मुश्किल हो जाता है. गंभीर स्वास्थ समस्याओं में गांव तक एंबुलेंस का आना परेशानी भरा होता है. बारिश के मौसम में तो एंबुलेंस गांव से 4 किलोमीटर दूर मुख्य सड़क पर ही खड़ी रहती है और लोग मरीज या गर्भवती महिलाओं को बाइक के सहारे मुख्य सड़क तक लेकर जाते है. जलमीनार का काम अधूरा, झरना का पानी बना सहारा गांव की सबसे गंभीर समस्या साफ पेयजल की किल्लत है. गांव के चारों टोला के निवासी हर दिन पीने के पानी के लिए संघर्ष कर रहे हैं. प्रधान टोला में करीब दो से तीन वर्ष पूर्व बोरिंग कराया गया था, लेकिन उसके बाद से न कोई देखरेख हुई और न ही उसका विस्तार. इसके अतिरिक्त, इसी टोला में एक जलमीनार निर्माण का कार्य बीते दो-तीन वर्षों से अधर में लटका हुआ है. ग्रामीणों ने बताया कि जलमीनार के पास एक प्वाइंट निकाल कर शुरुआत तो की गयी, जिससे महज तीन दिन ही पानी मिल पाया. बताया कि जलमीनार से न तो पानी का लाभ मिलता है और न ही घर – घर तक नल लगाया गया है. गांव से लगभग एक किलोमीटर दूर झरना है, जिस पर विभाग द्वारा एक कुआं बनाया गया है. यह झरना ही गांव के अधिकांश लोगों की पानी की मुख्य स्रोत बना हुआ है. परंतु झरने तक पहुंचने का रास्ता न केवल अत्यधिक पथरीला है बल्कि गंभीर रूप से चोटिल कर देने वाला भी है. महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों के लिए पानी लाने का यह कार्य एक जोखिम भरी जिम्मेदारी बन चुका है. हर घर नल-जल ” योजना कागजों में सिमटी सरकारी स्तर पर प्रचारित हर घर नल जल योजना खिलौड़ी गांव में अब तक जमीनी हकीकत नहीं बन पायी है. किसी भी टोला में यह योजना नहीं दिखती. प्रधान टोला में अधूरी जलमीनार इसका सबसे बड़ा प्रमाण है. अन्य टोला जैसे स्कूल टोला, चुनरभुई व बासकंदरी में तो किसी भी तरह की जलापूर्ति प्रणाली का अस्तित्व तक नहीं है. ग्रामीणों का दर्द : और कितनी पीढ़ियां देखेगी बदहाली… गांव के वृद्ध ग्रामीणों ने कहा कि मूलभूत सुविधाओं की आस में हमारी पूरी जिंदगी गुजर गयी. हम बचपन से यही देख रहे हैं. पानी के लिए एक-एक घंटा लगाकर झरने से पानी लाते जीवन पार हो गया. बर्तन सिर पर रखकर हम पथरीली पहाड़ियों पर चलते हैं, कई बार तो गिरकर चोट भी लगी है. हम लोगों को सरकार से बस इतना ही चाहिए कि गांव तक पक्की सड़क पहुंचे और हर टोला में साफ पानी की व्यवस्था हो. हर साल अधिकारी आते हैं, वादा करते हैं. पर कुछ नहीं होता. प्रशासन इस गांव की सुधि ले और जल्द से जल्द पक्की सड़क, साफ पानी, स्वास्थ्य केंद्र की स्थापना करे. जलमीनार का काम अधूरा है. समस्याओं को हल करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए, क्योंकि यही गांव झारखंड की असली पहचान हैं, जहां आज भी हम बुनियादी जरूरतों के लिए तरस रहे हैं.

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