दुमका. उपराजधानी दुमका समेत जिले के विभिन्न प्रखंडों काठीकुंड, जामा, रानीश्वर, रामगढ़, नोनीहाट, गोपीकांदर और शिकारीपाड़ा में सोमवार को वट सावित्री व्रत पारंपरिक श्रद्धा, भक्ति और उत्साह के साथ मनाया गया. सुहागिन महिलाओं ने अपने पति की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और अखंड सौभाग्य की कामना करते हुए व्रत रखा और विधिपूर्वक वट वृक्ष की पूजा की. इस व्रत पूजन को लेकर पूरे जिले में रविवार को ही व्रत की तैयारियां आरंभ हो गयी थीं. बाजारों में पूजा सामग्री, फल, सुहाग की वस्तुओं और शृंगार का विशेष क्रय-विक्रय हुआ. सोमवार को तड़के ही महिलाएं सोलह शृंगार कर वट वृक्षों के पास पहुंचीं. पूजा के दौरान पीला धागा, धूप, बांस के पंखे, मौली, पांच प्रकार के फल और दीपक आदि से वट वृक्ष का पूजन किया गया. पुजारियों द्वारा सावित्री-सत्यवान की कथा सुनायी गयी. इसे सुनकर महिलाएं भावविभोर हो गयी. धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत से महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है. बरगद के पेड़ की सात या 11 परिक्रमाएं कर रक्षा सूत्र बांधा गया और घर लौटकर पति की आरती उतारकर, तिलक लगाकर पंखा झेलते हुए उपवास तोड़ा गया. काठीकुंड, रामगढ़, नोनीहाट और शिकारीपाड़ा जैसे क्षेत्रों में तो वट वृक्षों के पास पूजा स्थल मेले का रूप ले चुके थे. सत्यवान-सावित्री की कथा, पौराणिक परंपरा के अनुसार महाभारत के वन पर्व से जुड़ी है, जिसमें सावित्री ने अपने पति के प्राण यमराज से वापस लाकर अखंड सौभाग्य की मिसाल कायम की थी. इस अवसर पर महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर शुभकामनाएं देती नजर आयी. पूजा में बांस की डलिया, गुड़, चना, पान, नारियल, मिठाई और जल से व्रत की विधि पूरी की गयी. जिले भर में यह पर्व न केवल धार्मिक आयोजन रहा, बल्कि महिलाओं के समर्पण, प्रेम और निष्ठा का जीवंत प्रतीक भी बना. वट सावित्री व्रत के माध्यम से समाज में वैवाहिक संबंधों की मजबूती और सांस्कृतिक परंपराओं के प्रति आस्था की गूंज सुनायी दी. धर्मस्थान, डंगालपाड़ा शिवमंदिर, ठेकाबाबा, शिवपहाड़ समेत अन्य मंदिरों, काठीकुंड बाजार, धावाटाड़, दानीनाथ मंदिर, जामा, चिकनियां, कैराबनी, महारो, लकड़ापहाड़ी, बरापलासी, परगाडिह, हल्दीपटी, भैरोपुर, लक्ष्मीपुर, बाबुकदेली, आसनबनी, रानीश्वर, कुमिरखाला, मगढ़ प्रखंड के रामगढ़, जोगिया, धोबा, महुबना, छोटी रण बहियार, बड़ी रण बहियार, गम्हरिया हाट, सिंदुरिया, ठाडीहाट, अमड़ापहाड़ी, डांडो, केंदुआ, कांजो, पतगोडा, कड़बिंधा, भदवारी, गंगवारा, शिकारीपाड़ा के बरमसिया, मोहलपहाड़ी, गणेशपुर, राजबांध, सरसडंगाल, कजलादहा, बेनागड़िया में मंदिरों में कथा सुनने के लिए महिलाओं की खूब भीड़ रही.
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