Home झारखण्ड पूर्वी सिंहभूम झारखंड की इस अनूठी कला में जीवंत हैं आदिवासी संस्कृति की कहानियां, हर फ्रेम में झलकती है जिंदगी

झारखंड की इस अनूठी कला में जीवंत हैं आदिवासी संस्कृति की कहानियां, हर फ्रेम में झलकती है जिंदगी

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झारखंड की इस अनूठी कला में जीवंत हैं आदिवासी संस्कृति की कहानियां, हर फ्रेम में झलकती है जिंदगी
Paitkar Painting of Jharkhand

Paitkar Painting: झारखंड राज्य अपने खूबसूरत प्राकृतिक दृश्यों, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और अनोखी कलाओं के लिए मशहूर है. यहां की एक अनूठी कला है, सदियों पुरानी पैतकर चित्रकला, जो आदिवासी संस्कृति, परंपराओं और कहानियों को जीवंत करती है. इस चित्रकला में प्राकृतिक रंगों और हस्तनिर्मित ब्रश से बनी कलाकृतियां झारखंड के कलाकारों की समृद्ध विरासत को दर्शाती हैं.

आदिवासी जीवनशैली और रीति-रिवाज का आकर्षक वर्णन

Description of everyday life

जानकारी के अनुसार, पैतकर चित्रकला एक लोक कला है, जो झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के धालभूमगढ़ क्षेत्र के अमादुबी गांव में बनाई जाती है. इन चित्रों में जीवन की उत्पत्ति, हिंदू धर्म के इतिहास और पौराणिक कथाएं, साथ ही आदिवासी जीवनशैली, रीति-रिवाज और त्योहारों की रोचक कहानियां दर्शायी जाती हैं.

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वर्टिकल स्क्रॉल पेंटिंग है, ‘पैतकर चित्रकला’

सूत्रों के अनुसार, पैतकर चित्रकला एक वर्टिकल स्क्रॉल पेंटिंग का प्रकार है. यह पर्यटकों के लिए भारत की प्राचीन संस्कृति को प्रदर्शित करने का एक स्रोत है. क्योंकि पैतकर कला के जरिए कलाकार आदिवासी त्योहारों, पूजा-पाठ, वनस्पतियों और जीवों के साथ ही हिंदू देवी-देवता और वास्तविक जीवन का चित्रण करते हैं.

प्राकृतिक रंगों से बनती है पेंटिंग

Natural colors are used in paitkar painting.

पैतकर चित्रकला बनाने में कलाकार प्राकृतिक रंगों का उपयोग करते हैं. कलाकार रंग बनाने के लिए पत्तियों, रंगीन पत्थरों और मिट्टी का इस्तेमाल करते हैं. हालांकि, इन्हें ढूंढने में थोड़ा समय लगता है. बताया जाता है कि पेंटिंग के लिए रंग बनाने के लिए पहले पहले पत्तियों और फलों को पीसकर पेस्ट बनाया जाता है. फिर, पेस्ट में पानी मिलाकर इसे उबाला जाता है. कलाकार रंग को गाढ़ा करने के लिए उबालते हैं.

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पेंटिंग बनाने के लिए कोई नियम नहीं

Women talking to each other (paitkar painting)

इस शैली की पेंटिंग बनाने के लिए कोई विशेष नियम का पालन नहीं करना होता है. इसे बनाने के लिए मोटी रेखाएं खींची जाती हैं. फिर, आकर्षक प्राकृतिक रंगों की सहायता से पौराणकि कथाओं और वास्तविक जीवन की घटनाओं को उकेरा जाता है. ऐसा कहा जाता है कि इस कला का नाम स्थानीय शब्द ‘पाटेकर’ से लिया गया है. इस कला के पहले संरक्षक राजा रामचंद्र धाल को कहा जाता है.

पैतकर चित्रकला को संजोने की जरूरत

Paitkar chitrakala

पैतकर पेंटिंग अपनी मंत्रमुग्ध कर देने वाली कथा परंपरा के लिए जानी जाती है. यह झारखंड के सामाजिक-धार्मिक रीति-रिवाजों पर आधारित वो कला है, जिसे सांस्कृतिक धरोहर की तरह संजोने की आवश्यकता है. इन आकर्षक पैतर चित्रकलाओं में रोजमर्रा की जिंदगी की सादगी से लेकर पौराणिक कथाओं की खूबसूरती तक समाहित होती है. यह इस क्षेत्र के जीवंत समाज को आकार देने का काम करती है.

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