जनप्रतिनिधियों में कोई दिलचस्पी नहीं दिखती
कनहर सिंचाई परियोजना को लेकर जीवन भर लड़ाई लड़नेवाले पूर्व विधायक हेमेंद्र प्रताप देहाती और पूर्व सांसद जोरावर राम का निधन हो चुका है. कनहर परियोजना के मामले को अपने मंत्रित्व काल में काफी आगे तक पहुंचाने का प्रयास करनेवाले पूर्व मंत्री रामचंद्र केसरी भी अब इस मुद्दे पर पूरी तरह से शांत हो चुके हैं. इधर, नयी पीढ़ी के नेताओं अथवा जनप्रतिनिधियों में कनहर परियोजना के मुद्दे से कोई दिलचस्पी नहीं दिखती है.
क्या है कनहर परियोजना
कनहर जलाशय सिंचाई परियोजना का डीपीआर वर्ष 1974 में बना था. इसमें गढ़वा जिले के चिनिया प्रखंड के बाराडीह गांव के पास तत्कालीन बिहार व मध्य प्रदेश की सीमा पर अवस्थित कनहर नदी पर बांध बनाना था. इस परियोजना में वर्तमान संपूर्ण गढ़वा जिला और पलामू जिला के चैनपुर प्रखंड की पूरी भूमि को सिंचित करने का लक्ष्य था. साथ ही 200 मेगावाट बिजली भी उत्पादन करना था, जो मध्य प्रदेश को देनी थी. क्योंकि, कनहर के डूब क्षेत्र में मध्य प्रदेश के मितगई से लेकर एक बड़ी वन भूमि व आबादी वाला इलाका पड़ रहा था.
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हर साल सुखाड़ व अकाल का सामना करना पड़ता है
इस परियोजना के लिए सबसे मजबूत आधार था कि गढ़वा जिला काफी गरीब जिला है. यहां के किसानों को हर साल सुखाड़ व अकाल का सामना करना पड़ता है. यहां हर साल भूख से लोगों की मौत होती है. तब परियोजना करीब 1000 करोड़ की थी. इसमें मध्य प्रदेश के मितगई में डूबनेवाले कोयला के भंडार और वन क्षेत्र के लिए मुआवजा का भी पूरा प्रावधान था. हर विधानसभा और लोकसभा चुनाव में प्रमुख मुद्दा बनता रहा. वर्ष 2000 में झारखंड अलग राज्य बनने के बाद लोगों में इस परियोजना को लेकर काफी उम्मीदें भी जगी थीं.
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