गढ़वा. गढ़वा जिले के बड़गड़ प्रखंड के चेमो सनेया गांव निवासी नीलांबर-पीतांबर के शहादत की आज 167वीं तिथि है. इन सहोदर भाइयों की वीरता, देशप्रेम और त्याग आज की पीढ़ी के लिए अनुकरणीय और प्रेरणादायक है. भारत में स्वतंत्रता के लिए 1857 में हुई पहली क्रांति में अक्टूबर 1857 से लेकर अप्रैल 1859 तक करीब डेढ़ वर्ष के कार्यकाल में गढ़वा जिले के इन बहादुर भाइयों ने अपने पराक्रम से इतिहास में अपने आपको सदा के लिए अमर कर लिया. जब अंग्रेज अपने साम्राज्य का पूरे भारत में विस्तार कर रहे थे. तब तत्कालीन बंगाल प्रांत में आनेवाले छोटानागपुर की इस इलाके में उन्हें भारी विद्रोह का सामना करना पड़ा था. गढ़वा जिले के चेमो सनेया निवासी चेमो सिंह के पुत्र नीलांबर और पीतांबर ने अंग्रेजी शासन का विरोध किया और उनको खुली चुनौती दे डाली थी. इस दौरान अंग्रेजी सेना को नीलांबर-पीतांबर और उसके साथियों के साथ कई बार युद्ध हुआ और बार-बार अंग्रेजी सेना को वापस लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा. नीलांबर-पीतांबर की इस वीरता की खबर जब बंगाल में अंग्रेजी हुकूमत तक पहुंची, तो उन्होंने नीलांबर-पीतांबर के आंदोलन को कुचलने और दोनों भाइयों को दंडित करने के लिए कमीश्नर लॉर्ड डाल्टन के नेतृत्व में बड़ी सेना भेज दी. डाल्टन ने तब अपने सैनिकों के साथ शाहपुर के पास कोयल नदी के किनारे अपने नाम पर डाल्टनगंज शहर बसाया था. यहां उसने कैंप कर नीलांबर-पीतांबर के खिलाफ सैन्य ऑपरेशन शुरू किया. इस दौरान करीब डेढ़ वर्ष के अंदर कई बार डाल्टन को मुंह की खानी पड़ी और भारी नुकसान उठाते हुए वापस लौटने के लिए विवश होना पड़ा. नीलांबर-पीतांबर ने डाल्टन की विशाल फौज को देख कर गुरिल्ला युद्ध अपनाया और डाल्टन को पराजित करते रहे. इस दौरान नीलांबर-पीतांबर ने सिर्फ रक्षात्मक नीति को नहीं अपनाया, बल्कि वे अंग्रेजों के खिलाफ इतना आक्रामक रहे कि उन्होंने डाल्टनगंज जाकर डाल्टन पर भी हमला किया. तब आयुक्त डाल्टन को जान बचाने के लिए भागकर लेस्लीगंज सैनिक छावनी में शरण लेनी पड़ी थी. सहाेदर भाइयों ने अपने साथियों के साथ लेस्लीगंज सैनिक छावनी पर भी धावा बोल दिया. नीलांबर-पीतांबर के आक्रामक तेवर से परेशान लॉड डाल्टन ने इसकी सूचना बंगाल शासन को देते हुए कहा कि यदि उनके पास पर्याप्त सैनिक बल नहीं भेजा गया, तो नीलांबर-पीतांबर उनकी सैनिक छावनी पर हमला कर उन सबों को मार सकते हैं. इसके बाद डोरंडा सैनिक छावनी से भारी संख्या में लॉड डॉल्टन को सेना भेजी गयी. उक्त सेना की बदौलत डाल्टन ने 12 से 22 फरवरी 1859, यानी लगातार 10 दिनों तक चेमो सनेया में कैंप कर नीलांबर-पीतांबर और उनके सभी साथियों को पकड़ने और उनके आंदोलन को कुचलने के लिए अभियान चलाया. लेकिन इसके बाद भी उन्हें कोई सफलता नहीं मिली. यद्यपि इस अभियान में नीलांबर-पीतांबर और लॉड डाल्टन दोनों को भारी नुकसान उठाना पड़ा था. अंतत: थक-हारकर डाल्टन को डाल्टनगंज वापस लौटना पड़ा था. भेदिया का सहारा लेकर किया गिरफ्तार : मार्च 1859 के अंतिम समय में अंतत: डाल्टन को दोनों भाइयों नीलांबर-पीतांबर को गिरफ्तार करने में सफलता मिली. पर यह सफलता कैसे मिली, इसका इतिहास की किसी पुस्तक में उल्लेख नहीं है, न ही यह गजेटियर में स्पष्ट है. लेकिन लोक कहानियों और उनके वंशजों से मिली सूचनाओं को सच माना जाये, तो अंग्रेजी शासन ने भेदिया का सहारा लिया था. इसमें तत्कालीन जमींदारों ने अंग्रेजों को मदद की. भेदियों के सहारे नीलांबर-पीतांबर को समझौता करने के बहाने बुलाया गया और गिरफ्तार कर लिया गया. इसके बाद लेस्लीगंज सैनिक छावनी में ले जाकर दोनों भाइयों को फांसी की सजा दे दी गयी. शहादत की तिथि पर संशय : नीलांबर-पीतांबर की शहादत तिथि 28 मार्च है. अंग्रेजों ने नीलांबर-पीतांबर के साथ बार-बार हुए युद्ध का गजेटियर में उल्लेख किया है. लेकिन उनकी गिरफ्तारी और फांसी की सजा देने का उल्लेख नहीं किया. गजेटियर के संकेतों से अनुमान लगाया गया कि जब लेस्लीगंज में दोनों भाइयों को फांसी की सजा दी गयी, तब मार्च महीने के अंतिम समय था. आजादी के बाद एक अप्रैल 1991 को गढ़वा जिला बनने के बाद तत्कालीन जिला प्रशासन ने स्थानीय प्रबुद्धों के साथ बैठकर काफी विमर्श व पड़ताल के बाद शहादत की तिथि 28 मार्च पर मुहर लगायी. तबसे उनका शहादत दिवस पूरे झारखंड में 28 मार्च को मनाया जाता है. गढ़वा जिला सहित राज्य के विभिन्न इलाकों में लोेगों ने नीलांबर-पीतांबर की प्रतिमा स्थापित उनके प्रति श्रद्धांजलि देने का काम किया है. पलामू के विश्वविद्यालय का नाम सहित अनेक स्मारक और भवनों के नाम भी सहोदर भाइयों नीलांबर-पीतांबर के नाम पर रखकर उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त की गयी है.
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