गढ़वा. एक अप्रैल गढ़वा जिला का 35वां स्थापना दिवस है. एक अप्रैल वर्ष 1991 को ही पलामू जिला से काटकर गढ़वा को जिला बनाया गया था. तबसे गढ़वा को जिला बने 34 साल बीत चुके हैं. तबसे आज तक गढ़वा जिले में काफी बदलाव हुए हैं. जिला बनने के करीब साढ़े तीन दशक के सफर में गढ़वा जिले ने विकास के क्षेत्र में नयी लकीरें खींचने का काम किया है. एक तरफ से जिले की पुरानी पहचान अब बदल चुकी है. वहीं कई क्षेत्रों में काफी प्रगति भी की है. गौरतलब है कि गढ़वा को राष्ट्रीय फलक पर अमूमन गरीबी, भूख, बेरोजगारी, भूख से मौत, सूखा, अकाल, पलायन, नक्सलवाद, बाल बंधुआ मजदूरी, अशिक्षा आदि के रूप में जाना जाता है. लेकिन इस पहचान से काफी हद तक मुक्ति मिल चुकी है. धीमी गति से ही सही, हर वित्तीय वर्ष में विकास की नयी गाथा लिखी जा रही है. नौ साल बिहार राज्य में और झारखंड बनने के ढाई दशक में सरकार और प्रशासन द्वारा बुनियादी समस्याओं का समाधान करने का प्रयास किया गया है. इसमें मुख्य रूप से आवागमन के क्षेत्र मेंं गढ़वा का अभूतपूर्व विकास हुआ है. पड़ोसी राज्यों सहित स्थानीय स्तर पर भी रोड कनेक्टीविटी बढ़ चुका है. इससे गढ़वा जिला के व्यवसायियों को व्यवसाय को बढ़ाने में काफी मदद मिली है. जिले से होकर एनएच-75 और 343 दो-दो राष्ट्रीय राजमार्ग गुजरे हैं. गढ़वा की चिर-प्रतीक्षित मांग बाइपास का निर्माण करके गढ़वा शहर मेंं वाहनों के भार को कम करने का प्रयास किया गया है. वहीं अब जिले में ही सामान्य शिक्षा से लेकर तकनीकी व व्यवसायी शिक्षा की भी पढ़ाई हो रही है. जिले की एकमात्र अंगीभूत महाविद्यालय में नामधारी कॉलेज में स्नातकोत्तर तक की पढ़ाई हो रही है. वहीं जिले में बाबू दिनेश सिंह विश्वविद्यालय के रूप में निजी विवि की स्थापना हुई है, जहां विभिन्न तकनीकी कोर्स की पढ़ाई हो रही है. सामान्य शिक्षा में जहां सरकारी विद्यालयों में आधारभूत संरचना से लेकर सभी चीजों को अद्यतन करने का प्रयास हुआ है, वहीं सभी क्षेत्रों में अनेक बड़े-बड़े निजी विद्यालय भी संचालित हो रहे हैं. इससे जागरूक छात्र-छात्राओं को पढ़ाई के लिये बाहर नहीं जाना पड़ रहा है. सुरक्षा के क्षेत्र में प्रगति हुई और नक्सलवाद हो अथवा पेशेवर अपराध, इसपर काफी नियंत्रण हो चला है.
संबंधित खबर
और खबरें