3 दशक से आधी आबादी की कुल्हाड़ी की सुरक्षा में 2200 एकड़ में फैला तुकतुको जंगल

Forest Conservation| गिरिडीह जिले के बगोदर प्रखंड के अडवारा पंचायत के तुकतुको जंगल की सुरक्षा महिलाओं के भरोसे है. महिलाओं की वजह से यह जंगल एक रमनीक स्थल बन चुका है. पंचायत के पुरुषों ने जंगल बचाने की कवायद शुरू की थी. पुरुष कमाने के लिए बाहर चले गये, तो महिलाओं ने इस जिम्मेदारी को बखूबी निभाया. कुल्हाड़ी के साथ घूमती महिलाओं से बड़े-बड़े लकड़ी माफिया खौफ खाते हैं.

By Mithilesh Jha | April 14, 2025 8:20 AM
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Forest Conservation| बगोदर, कुमार गौरव : गिरिडीह जिले के बगोदर प्रखंड के अडवारा पंचायत के तुकतुको जंगल की चर्चा वन विभाग शान से करता है. 2200 एकड़ में फैले इस जंगल की सुंदरता किसी भी प्रकृति प्रेमी का मन मोह लेता है. ऐसा बहुत आसानी से नहीं हुआ. बगोदर वन प्रक्षेत्र पर माफियाओं की नजर शुरू से रही है. जीटी रोड के किनारे होने के कारण ट्रांसपोर्टिंग की सुविधा आसान होती है. इसलिए वन माफिया आसानी जंगल काटकर ले जाते हैं. इस वन पर भी संकट के बादल मंडरा रहे थे. आसपास के कई जंगलों को कटता देख यहां के ग्रामीणों ने इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी संभाली. ग्रामीणों ने तुकतुको वन बचाओ समिति का गठन किया.

कुल्हाड़ी के साथ जंगल की निगरानी करती हैं महिलाएं

पंचायत के पुरुष इस समिति से जुड़े और जंगल बचाने की कवायद में लग गये. जल्द ही समस्या सामने आयी. घर की जवाबदेही संभालने के लिए पुरुष सदस्यों को बाहर कमाने जाना पड़ा. अब चिंता थी जंगल बचाने की. इस चिंता को गांव की महिलाओं ने दूर कर दिया. महिलाओं ने टीम बनाकर कुल्हाड़ी के साथ जंगल की निगरानी शुरू की. इसका असर आज दिखता है. जंगल बेहद खूबसूरत दिखने लगा है.

ऐसे काम करती है तुकतुको वन बचाओ समिति

तुकतुको वन बचाओ समिति से जुड़े सदस्यों ने 3 दशक से जंगल की सुरक्षा की कमान संभाल रखी है. जब रोटी के लिए पुरुषों को बाहर जाना पड़ा, तो महिलाओं ने तय किया कि हर घर से एक-दो महिला इस समिति से जुड़ेंगी. दिन और रात दोनों समय पहरेदारी करेंगी. इसके लिए प्रतिदिन 5-5, 10-10 महिलाओं की अलग-अलग टोली बनती है. इन महिलाओं से बड़े-बड़े लकड़ी माफिया खौफ खाते हैं. ये जंगल काटने वालों का प्रतिरोध तो करती ही हैं, जंगल में आग लगाने वालों के लिए भी चामुंडा का रूप धारण कर लेतीं हैं. ये मिलकर जंगल बचाने का अभियान चला रहीं हैं. यही वजह है कि इस जंगल में बेशकीमती पेड़, फलदार वृक्ष और आयुर्वेदिक पौधों के साथ-साथ पशु-पक्षी भी सुरक्षित हैं.

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रात में भी जंगल में डटी रहती है महिलाओं की टोली

समिति की महिलाएं रात में भी जंगल की सुरक्षा में तैनात रहतीं हैं. रात के अंधेरे में भी जंगल से लकड़ी काटने वाले चोरों को खदेड़ देतीं हैं. पकड़े जाने पर लकड़ी तस्करों को दंड भी यही महिलाएं देतीं हैं. ग्रामीणों की एकजुटता के कारण यह जंगल उजड़ने से बच गया. जंगल की सुरक्षा और इसके संरक्षण पर हर रविवार को समीक्षा बैठक होती है. इसमें जंगल की गतिविधियों पर चर्चा होती है. मोर, नील गाय, हिरण, भेड़िया, सियार, अजगर समेत अन्य पशु-पक्षियों को सुरक्षा देने पर भी चर्चा होती है.

जंगल ही हमारा सब कुछ है. इसलिए हमलोग जंगल की सुरक्षा में लगे रहते हैं. हर दिन हमलोग तय करते हैं कि जंगल में कोई पेड़ नहीं कटे. 3 दशकों से हमलोग इसकी सुरक्षा में लगे हैं.

पार्वती देवी

जंगल में कई तरह के जीव-जंतु हैं. उन्हें बचाना बहुत जरूरी है. जैसे हमलोग अपने घर में सुरक्षित रहते हैं, उसी तरह पेड़-पौधों के बीच उनका घर है. इसलिए लगातार हमलोग उसे भी बचाने में लगे हैं.

गायत्री देवी

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