सामंतवादियों के जुल्म के खिलाफ चलाया गया था धनकटनी अभियान
दिशोम गुरू सह झामुमो के संस्थापक संरक्षक शिबू सोरेन का गिरिडीह से गहरा लगाव रहा. गिरिडीह जिले के गांडेय व पीरटांड़ प्रखंड उनकी कर्मभूमि रही. शिबू सोरेन ने 70 के दशक में इन्हीं इलाकों से महाजनी प्रथा, अशिक्षा व हड़िया-दारू के खिलाफ अभियान छेड़ा था. जमींदारी प्रथा के खिलाफ जहां जन गोलबंदी के जरिये हुंकार भरी थी, वहीं आदिवासी समेत अन्य समाज के लोगों को नशाबंदी और शिक्षा के प्रति जागरूक किया. आदिवासी समाज को शिक्षा के महत्व से अवगत कराते रहे. उन्हें बताया जाता था कि आदिवासियों के कम पढ़-लिखे रहने के कारण उनका शोषण होता है. नुकसान होता है. वह कहते थे सबके लिए शिक्षा जरूरी है. विकास में हड़िया बाधक है. आत्मनिर्भर बनने की दिशा में खेती-बारी पर ध्यान देना होगा. यूं तो जिले में शिबू सोरेन के नेतृत्व में कई आंदोलन किये गये, लेकिन सामंतवादियों के जुल्म के खिलाफ चलाया गया धनकटनी अभियान काफी महत्वपूर्ण रहा. उस कालखंड में अपने अधिकार को लेकर लोगों के आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए इस अभियान को चलाया गया था, जिसमें सूदखोरों से बचाव के लिए मर्द खेत के चारों ओर तीर-धनुष लेकर खड़े हो जाते थे और महिलाएं अपने खेत से धान काटकर आपस में बांटतीं थीं.गिरिडीह जिले में विभिन्न आंदोलनों के जरिये गुरुजी शोषण और सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ हमेशा संघर्षशील रहे. शोषण मुक्त समाज की स्थापना के लिए लोगों को एकजुट किया और संघर्ष के रास्ते चलकर जुल्मों के खिलाफ मोर्चा खोले. आदिवासियों पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ वह सदैव मुखर रहे. नतीजतन वह कई लोगों की आंखों की किरकिरी भी बन गये थे. लेकिन, दृढ़ इच्छा शक्ति और संकल्प के साथ लड़ायी लड़ी. पीरटांड़, गांडेय, तिसरी आदि इलाकों में जनहित में कई आंदोलन हुए.