गुमला. पड़हा समन्वय समिति भारत के आह्वान पर उरांव क्लब दुंदुरिया गुमला में जगरनाथ उरांव की अध्यक्षता में विभिन्न सामाजिक संगठनों की बैठक हुई. बैठक में चर्चा हुई तथा निर्णय आया कि केंद्रीय सरना स्थल सिरमटोली बचाव मोर्चा को नैतिक समर्थन के साथ समस्याओं का निराकरण जरूरी है. उन्होंने कहा है कि राज्य गठन के समय से ही सरकारी विभागों, निकायों व निगमों में आरक्षण रोस्टर/रजिस्टर का अनुपालन आरक्षण नीति के अनुसार नहीं किया जा रहा है. इस कारण आरक्षित वर्गों (अनुसूचित जनजाति/जाति, पिछड़ा वर्ग व आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग) को उचित प्रतिनिधित्व न तो सीधी नौकरी में मिल रही है और न प्रमोशन में अनुसूचित जनजाति/जाति को, जिससे समुदाय/समाज मुख्यधारा में जुड़ने से वंचित रह जा रहा है. बैकलॉग पदों के रख-रखाव में अनियमितता के कारण सीधी भर्ती में आंकड़ों की गणना नहीं होकर सिर्फ नये पदों पर बहाली हो रही है. आरक्षित वर्ग अपने संवैधानिक अधिकार से वंचित होते जा रहे हैं. कोई भी कार्यालय में भ्रमण करने पर स्वतः पता चलता है. अनुबंध पर नौकरी अल्प अवधि के लिए दिया जाता है. परंतु झारखंड राज्य में स्थायी नौकरी देने का एक माध्यम बना दिया गया है. उनकी सेवा विस्तार बार-बार कर न्यायालय के सहारे स्थायी करने का षडयंत्र चल रहा है और आरक्षण नीति का पूर्णतः अवहेलना की जा रही है. जो विभाग सरकारी खर्चों से चलता है. उसमें आरक्षण नीति का पूर्णतः अनुपालन करना है. परंतु अनुबंध व आउटसोर्सिंग के माध्यम से नियुक्ति में शत-प्रतिशत उल्लंघन हो रहा है. इस कारण राज्य की नौकरियों में आरक्षित वर्गों को उनका उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया है. मंत्री मो इरफन अंसारी ने भी माना है कि आउटसोर्सिंग एक मानसिक, शारीरिक व आर्थिक शोषण की नियुक्ति है. हम इसे शीघ्र बंद करने की मांग करते हैं. हमारे आदिवासी विधायक विधानसभा में बुनियादी संवैधानिक सवालों को रखते नहीं हैं. उन्हीं विधायकों को 15 से अधिक संख्या में असंवैधानिक रूप से रखते हुए तथा पांचवीं अनुसूचित क्षेत्र के संरक्षक राज्यपाल को छोड़ कर जनजातीय परामर्शदात्री परिषद का गठन किया गया है, जिसकी तिमाही बैठक कर समस्याओं का निदान करना है. परंतु बैठक भी 17 महीने से नहीं हुआ है. हम मांग करते हैं कि टीएसी का संवैधानिक रूप से गठन कर लंबित मामलों का यथाशीघ्र निबटारा करें. राज्य गठन के बाद राष्ट्रीयकृत बैंकों द्वारा सीएनटी, एसपीटी एक्ट की जमीन को प्रतिभूति रख कर ऋण मुहैया कराया जाता था. क्योंकि इस प्राकृतिक की जमीन को पांच साल के लिए पंजीकृत बंधक रखने का प्रावधान है. इससे समय-समय पर बंधक विस्तारित करते हुए लंबी अवधि के लिए ऋण दिया जाता था. अचानक षडयंत्र के तहत वर्ष 2005 से ऋण देना बंद कर दिया गया है, जो आदिवासियों के विकास में बड़ा बाधक है. सरकार ने 26 करोड़ तक की ठेकेदारी व एसएमइ में स्वरोजगार के लिए व्यवस्था की है. परंतु पूंजी के अभाव में सरकार की घोषणा मात्र कागज पर रह गयी है. हम सरकार से मांग करते हैं कि पुनः यथाशीघ्र राष्ट्रीयकृत बैंकों से ऋण मुहैया कराये, ताकि आर्थिक रूप से समृद्ध होर जीवन स्तर सुधार सके. पेसा कानून 1996 का नियम 28 वर्षों में नहीं बन पाया है, जिससे रूढ़ी प्रथा तथा पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में बुरी तरह प्रभाव पड़ रहा है. जल, जंगल, जमीन, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार अस्त-व्यस्त हो गया है. पेसा कानून 23 प्रावधानों समेत नियमावली यथाशीघ्र बननी चाहिए. आदिवासी समुदाय के सदस्यों को झारखंड के किसी भी क्षेत्र में सीएनएल, एसपीटी एक्ट की जमीन सीमित सीमा तक खरीदने/बसने का अधिकार दिया जाना चाहिए. ताकि शहरी क्षेत्रों में घर मकान व्यवसाय स्थापित कर अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देते हुए आत्मनिर्भर हो सके. बैठक में विभिन्न संगठन के कई लोग मौजूद थे.
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