आजादी के दीवाने गुमला के बख्तर साय और मुंडल सिंह को 4 अप्रैल को कोलकाता में दी गयी थी फांसी

Bakhtar Sai Mundal Singh Death Anniversary: गुमला की धरती ने बख्तर साय और मुंडल सिंह जैसे सपूत पैदा किये, जिन्होंने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिये. उनकी वीरता की कहानियां आज भी रायडीह की वादियों में गूंजती है. पढ़ें इन दोनों वीरों की गाथा.

By Mithilesh Jha | April 4, 2025 3:30 PM
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Bakhtar Sai Mundal Singh Death Anniversary| गुमला, दुर्जय पासवान : आज (4 अप्रैल) बख्तर साय व मुंडल सिंह का शहादत दिवस है. देश की आजादी में इन दोनों वीर सपूतों का महत्वपूर्ण योगदान रहा. गुमला में कई वीर पैदा हुए, जिन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी (अंग्रेज) से लोहा लिया. अपनी साहस, शक्ति, सूझ-बूझ से अंग्रेजों को पराजित भी किया. इन्हीं वीर सपूतों में गुमला जिले के रायडीह प्रखंड के बख्तर साय और मुंडल सिंह भी शामिल थे. इन्होंने न केवल ईस्ट इंडिया कंपनी का विरोध किया, बल्कि उन्हें छोटानागपुर क्षेत्र में घुसने पर सबक भी सिखाया. दोनों शहीद जरूर हो गये, लेकिन आज भी गुमला जिले में इन दोनों वीर सपूतों को बड़ी श्रद्धा से याद किया जाता है.

रायडीह की वादियों में गूंजती है बख्तर साय और मुंड सिंह की वीरता की कहानियां

दोनों वीरों की कहानी आज भी रायडीह प्रखंड की वादियों में गूंजती है. लोगों की जुबान से इन सपूतों की वीरगाथा सुनने को मिलती है. दोनों ने जिस बहादुरी से अंग्रेजों को खदेड़ा, उस पर क्षेत्र के लोग आज भी गर्व करते हैं. बख्तर साय और मुंडल सिंह की पूजा होती है. अंग्रेजों से लड़ाई के दौरान बख्तर और मुंडल ने नवागढ़ क्षेत्र की गुफाओं को अपना ठिकाना बना लिया था. यह गुफा आज भी मौजूद हैं.

आज भी मौजूद हैं तालाब और शिविलंग

बख्तर साय और मुंडल सिंह जिस तालाब का पानी पीते थे, वह तालाब आज भी मौजूद है. युद्ध के दौरान यह तालाब रक्त से भर गया था. इसलिए इसे रक्त तालाब भी कहते हैं. नवागढ़ में वह शिवलिंग आज भी मौजूद है, जहां दोनों पूजा करते थे. गढ़पहाड़ आज भी इन दोनों वीरों की युद्ध की कहानी बयां करता है.

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बख्तर साय ने हीरा राम का सिर काटकर अंग्रेजों को भेजा था

बख्तर साय नवागढ़ परगना (वर्तमान में रायडीह प्रखंड) के जागीरदार थे. उन्होंने ईस्ट इंडिया कंपनी को खुली चुनौती दी. उसे पराजित किया. पराजय के बाद अंग्रेजों ने छोटानागपुर के महाराजा हृदयनाथ शाहदेव से संधि की. 12 हजार रुपए टैक्स वसूलने लगे. उस समय अंग्रेज टैक्स वसूली के लिए कड़ा रुख अपनाते थे. जागीरदार और रैयत पैसा देकर परेशान थे. अंग्रेजों से संधि के बाद महाराजा हृदयनाथ शाहदेव ने हीरा राम को टैक्स वसूली के लिए नवागढ़ भेजा. बख्तर साय ने हीरा राम का सिर काटकर महाराज को भेज दिया.

रामगढ़ मजिस्ट्रेट ने हजारीबाग की सैन्य टुकड़ी को बख्तर और मुंडल को पकड़ने भेजा

महाराजा इससे अत्यंत क्रोधित हुए. ईस्ट इंडिया कंपनी को इसकी सूचना दी गयी. 11 फरवरी 1812 को रामगढ़ मजिस्ट्रेट ने लेफ्टिनेंट एचओ डोनेल के नेतृत्व में हजारीबाग की सैन्य टुकड़ी को नवागढ़ के जागीरदार को पकड़ने के लिए भेजा. इसी बीच, रामगढ़ बटालियन के कमांडेंट आर गार्ट ने छोटानागपुर के बारवे (वर्तमान में रायडीह, चैनपुर व डुमरी), जशपुर और सरगुजा के राजा को पकड़ने के लिए एक पत्र लिखा. साथ ही पूरे क्षेत्र की नाकेबंदी करने के लिए सहायता मांगी.

लेफ्टिनेंट डोनेल ने नवागढ़ को घेरा

जशपुर राजा के साथ आर गार्ट के अच्छे संबंध थे. इसका फायदा उठाते हुए लेफ्टिनेंट एचओ डोनेल ने हजारों सैनिकों के साथ मिलकर नवागढ़ को घेर लिया. अंग्रेजों के मंसूबों की जानकारी पनारी परगना के जागीरदार मुंडल सिंह को हो गयी. वे बख्तर साय की सहायता के लिए नवागढ़ पहुंच गये. दोनों ने मिलकर अंग्रेजों से लोहा लिया.

अंग्रेजों की कूटनीति में दोनों वीर फंसकर शहीद हुए थे

वर्ष 1812 में नवागढ़ के आसपास घना जंगल था. ऊंचे-ऊंचे पहाड़ थे. अंग्रेजों को मुंडल सिंह और बख्तर साय तक पहुंचने में परेशानी होने लगी. अंग्रेजों ने एक विशेष रणनीति के तहत नवागढ़ को चारों ओर से घेर लिया. बख्तर साय और मुंडल सिंह जगह बदलकर आरागढ़ा की गुफा में रहने लगे. अंग्रेजों को जब इसकी जानकारी हुई, तो उन्होंने गुफा तक जाने वाली नदी के पानी को गंदा कर दिया. इससे बख्तर साय और मुंडल सिंह अपने सैनिकों के साथ पानी न पी सके. अंग्रेजों की इस गंदी चाल के बाद बख्तर और मुंडल जशपुर (छत्तीसगढ़ राज्य) के राजा रणजीत सिंह के यहां गये. यहां से कहीं अन्यत्र जा रहे थे. इसी दौरान 23 मार्च 1812 को दोनों पकड़े गये. 4 अप्रैल 1812 को दोनों को कलकत्ता के फोर्ट विलियम में फांसी दे दी गयी.

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