गुमला, दुर्जय पासवान : आज 29 अक्टूबर को आदिवासियों के मसीहा स्व कार्तिक उरांव की जयंती है. कार्तिक उरांव, झारखंड की वह शख्सीयत हैं, जिन्होंने आदिवासियों की जमीन को लुटने से बचाने के लिए सबसे पहला आंदोलन किया. आज वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनका पूरा जीवन लोगों के लिए प्रेरणास्रोत है. आज हम कार्तिक उरांव के बारे में ऐसी बातें आपको बताने जा रहे हैं, जिसके बारे में बहुत कम लोगों को पता है. उनके इस पहलू से लोग अब तक अंजान थे. कार्तिक उरांव बचपन से ही पढ़ाकू थे. सिर्फ कोर्स की किताबें ही नहीं, धार्मिक पुस्तकें भी खूब पढ़ते थे. उनके पैतृक गांव गुमला जिले के लिटाटोली की सबसे वृद्ध छेदन उरांइन ने कहा कि रामायण कार्तिक उरांव की पसंदीदा धार्मिक पुस्तक थी. छेदन उरांइन ने हमें गांव का वह 300 साल पुराना पीपल (जितिया पाकर) व तिसरी पाकर के पेड़ भी दिखाए, जिस पर कार्तिक उरांव चढ़कर पढ़ाई करते थे. पीपल पेड़ गांव से कुछ दूरी पर सुनसान जगह है. पढ़ने में कोई विघ्न न आए, इसलिए वह पेड़ पर बैठ जाते थे और बड़े आराम से पढ़ाई करते थे. छुट्टी के दिनों में वे ज्यादातर पीपल पेड़ पर ही नजर आते थे. छेदन उरांइन कहतीं हैं कि स्व कार्तिक उरांव मेरे पिता के समान थे. मैंने अपने पूर्वजों से उनके बारे में काफी कुछ सुना है. वे रामायण पढ़ा करते थे. पुस्तकें इतनी पढ़ ली थी कि बाद में वे सिर्फ धर्म व समाज के बारे में ही बातें करने लगे थे.
कार्तिक उरांव का जन्म लिटाटोली गांव में हुआ था. आज गांव को यहां के नेता व प्रशासन भूल गए हैं. गांव की दुर्दशा से सभी वाकिफ हैं. गांव की समस्या दूर करने की पहल नहीं हो रही. इस गांव को आदर्श ग्राम के रूप में विकसित करने की योजना तैयार है.
मंगरा उरांव, लिटाटोली के बुजुर्ग
गुमला से 10 किमी दूर लिटाटोली गांव को विकास के रहनुमा का इंतजार है. कहने को यह राज्य के सबसे बड़े मसीहा का गांव है, लेकिन गांव की जो दुर्दशा है, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता. गांव में पानी व सड़क सबसे बड़ी समस्या है.
प्रेमचंद उरांव, ग्रामीण, लिटाटोली
गांव में शौचालय जैसे-तैसे बना था. कुछ लोग अपने से मरम्मत करवाकर उसका उपयोग करते हैं. हमारे गांव में पानी की सबसे बड़ी समस्या है. गांव में पक्की सड़क भी नहीं है. पंचायत भवन अधूरा है. प्रशासन से अनुरोध है कि हमारे गांव की समस्या को दूर करने की पहल करे.