शिवालयों से घिरा है गुमला, शिवरात्रि पर जलार्पण करने बिहार, बंगाल, ओडिशा और छत्तीसगढ़ से आते हैं श्रद्धालु

Maha Shivratri 2025: झारखंड के गुमला जिले में चारों ओर शिवालयों और शिवलिंगों की भरमार है. कई मंदिर प्राचीन काल में बने हैं, जो लोगों की आस्था का केंद्र हैं.

By Mithilesh Jha | February 25, 2025 6:27 PM
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Maha Shivratri 2025|गुमला, दुर्जय पासवान : झारखंड के गुमला जिले के चारों ओर शिवालय और शिवलिंग विराजमान हैं. गुमला एक ऐसा जिला है, जिसके हर प्रखंड, हर पंचायत और हर गांव में शिव मंदिर और शिवलिंग जरूर हैं. जिले में कई प्राचीन मंदिर भी हैं. इसका कनेक्शन रामायण और महाभारत काल से है. 7वीं व 8वीं शताब्दी के भी मंदिर और शिवलिंग गुमला जिले में हैं. जंगल और पहाड़ों पर रहने वाले गुमला के अधिकांश लोग खुद को शिव का सबसे बड़ा भक्त मानते हैं. यही वजह है कि महाशिवरात्रि में लोगों का उत्साह देखते ही बनता है. महाशिवरात्रि में शिव मंदिर और शिवलिंग पर जलार्पण के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है. गुमला के प्रमुख शिव मंदिरों में टांगीनाथ धाम, देवाकीधाम, बुढ़वा महादेव मंदिर करमटोली, वासुदेव कोना, देवगांव गुफा, पहाड़गांव, सेरका शिवलिंग के साथ-साथ अन्य कई मंदिर भी हैं. 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन इन शिवालयों में पूजा की तैयारी पूरी कर ली गयी है. मंदिरों और शिवालयों को विशेष रूप से सजाया गया है. शिवरात्रि पर जलार्पण के लिए झारखंड के अलग-अलग जिलों से तो लोग आते ही हैं, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और छत्तीसगढ़ से भी श्रद्धालु यहां के अलग-अलग मंदिरों में पूजा-अर्चना करने के लिए आते हैं.

देवाकीधाम : श्रीकृष्ण की मां देवकी के नाम पर है मंदिर

गुमला जिले के घाघरा प्रखंड से 3 किमी दूर केराझारिया नदी के तट देवाकी बाबाधाम मंदिर है. जनश्रुति के अनुसार, महाभारत काल में पांडव के अज्ञातवाश के समय भगवान श्रीकृष्ण ने यहां 5 शिवलिंग की स्थापना की थी. इसमें से एक शिवलिंग देवाकीधाम में है. इसलिए इस स्थल का नाम श्रीकृष्ण की मां देवकी के नाम पर पड़ गया. पांडवों के अज्ञातवाश की समाप्ति के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने देवाकीधाम में ही शंख बजाया था.

देवगांव : पहाड़ की गुफा में बसते हैं स्वयं भगवान शिव

पालकोट प्रखंड में देवगांव है. यहां पहाड़ की गुफा में एक मंदिर है. यह प्राचीन मंदिर है. गुमला और सिमडेगा मार्ग पर पड़ने की वजह से यहां बिहार, ओड़िशा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और झारखंड राज्य के श्रद्धालु आते हैं. पालकोट के पहाड़ पर सावन के महीने में भी भक्तों की भीड़ उमड़ती है. ओड़िशा से काफी संख्या में शिवभक्त यहां बाबा भोलेनाथ पर जलार्पण करने के लिए आते हैं. पालकोट में बाबा बूढ़ा महादेव मंदिर सहित कई प्रमुख स्थल हैं, जो श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं.

टांगीनाथ : टांगीनाथ धाम में उमड़ता है श्रद्धालुओं का सैलाब

डुमरी प्रखंड के टांगीनाथ धाम में कई राज्यों से शिवभक्त जलाभिषेक करने के लिए पहुंचते हैं. यहां कई पुरातात्विक और ऐतिहासिक धरोहर हैं. यहां की कलाकृतियां और नक्कासी, देवकाल की कहानी बयां करती है. टांगीनाथ धाम में यत्र-तत्र सैकड़ों शिवलिंग मिल जाते हैं. यह मंदिर शाश्वत है. जमीन के ऊपर स्थित त्रिशूल के अग्र भाग में कभी जंग नहीं लगता.

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वासुदेव कोना : प्राचीन मंदिर है से जुड़ी है लोगों की आस्था

रायडीह प्रखंड में वासुदेव कोना मंदिर है. यह प्राचीन मंदिर है. इस मंदिर से अंग्रेजी हुकूमत की लड़ाई का इतिहास भी जुड़ा है. यहां महाशिवरात्रि और सावन के महीने में भक्तों का रेला आता है. स्थानीय लोगों के अलावा छत्तीसगढ़ और ओड़िशा राज्य से भी श्रद्धालु यहां आते हैं. कहते हैं कि वासुदेव कोना मंदिर में दिल से मांगी गयी मुराद जरूर पूरी होती है. इसलिए यहां भक्त दूर-दूर से पूजा करने आते हैं.

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सेरका शिवलिंग : हर 6 माह में बदलता है रंग

बिशुनपुर मुख्यालय से सटे सेरका गांव स्थित अति प्राचीन शिवालय लोगों की आस्था का केंद्र है. मंदिर की खासियत यह है कि यहां नागेश्वर नाथ एवं दूधेश्वर नाथ दो शिवलिंग हैं. साल में 2 बार इन शिवलिंगों का रंग खुद-ब-खुद बदल जाता है. शिवलिंग कभी लाल हो जाता है, तो कभी सफेद. इसकी वजह से इस मंदिर में लोगों की अटूट आस्था है.

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