: राजा रूद्र प्रताप सिंह के नाम पर गांव का नाम रूद्रपुर पड़ा. : औरंगजेब ने मंदिर व राजमहल को ध्वस्त करा दिया था. 20 गुम 19 में जगह-जगह पर इस प्रकार शिवलिंग है 20 गुम 20 में मंदिर के अंदर प्राचीन शिवमंदिर जयकरण महतो, जारी जारी प्रखंड के गोविंदपुर पंचायत में रुद्रपुर गांव है. यह गांव शिव भगवान के वास स्थल के रूप में भी माना जाता है. क्योंकि यहां प्राचीन शिवमंदिर है. मंदिर का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है. यहां अनगिनत शिवलिंग भी है. गांव के अलग-अलग स्थानों पर शिवलिंग को देखा जा सकता है. इसलिए रूद्रपुर मंदिर से श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ी हुई है. रुद्रपुर के लोगों ने बताया कि आज से एक हजार वर्ष पूर्व रूद्र प्रताप सिंह नामक राजा इस रास्ते से गुजर रहे थे. उसी समय रुद्रपुर गांव के प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर रुके तो देखा कि बूढ़ा महादेव में शिवलिंग लगा हुआ है. तब उन्होंने सोचा कि क्यों ना यहां पर एक भव्य मंदिर का निर्माण किया जाये. तब उन्होंने अपने सेनापतियों को आदेश देते हुए कहा कि यहां मंदिर का निर्माण करायें. तत्पश्चात मंदिर की कुछ दूरी पर राजा रूद्र प्रताप सिंह ने एक राजमहल बनवाया था. राजा रुद्र प्रताप सिंह ने उस गांव का नाम रुद्रपुर नामकरण कर दिया. उसी समय शिवगुटरा मंदिर, देउर महादेव, बूढ़ा महादेव को भी स्थापित किया. कुछ वर्षों बाद मुगल साम्राज्य के राजा औरंगजेब इस रास्ते से गुजर रहे थे, तो उनकी नजर इस भव्य मंदिर पर पड़ा, तो औरंगजेब ने मंदिर व राजमहल को तोड़ने का आदेश दिया. उसी समय मंदिर एवं राजमहल को औरंगजेब ने पूरी तरह से ध्वस्त करा दिया. साथ ही शिवलिंग को इधर-उधर फेंक दिया. जिस कारण अभी भी रुद्रपुर गांव के चारों ओर जहां शिवलिंग मिला. उस समय के लोगों ने वहीं पर स्थापित कर दिया. कुछ वर्षों बाद रुद्रपुर के पूर्वजों में विक्रम सिंह, ठाकुर प्रसाद सिंह, रामप्रसाद सिंह, शिव प्रसाद सिंह ने ध्वस्त मंदिर को खोदकर मिट्टी हटाकर शिवलिंग को निकाला और पुनः स्थापित कर दिया. यहां पर अभी भी मंदिर के ध्वस्त होने के बाद कई शिवलिंग दबे होने की संभावना है. अगर खुदाई की जाये तो यहां से कई प्राचीन धरोहर निकलने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता. कई इतिहास है, खुदाई हो तो मिलेंगे कई स्रोत रुद्र प्रताप सिंह द्वारा बनाये गये मंदिर में प्रयोग किये गये ईंट, पत्थर एवं दीवार भी निशान के तौर पर है. राजा ने रुद्रपुर के अगल बगल के पहाड़ में भी कई निशान छोड़ कर गये हैं. रुद्रपुर गांव के पश्चिम में एक टीले की आकृति में छोटी पहाड़ी है. जिसमें मंदिर था. उसको भी ध्वस्त कर दिया गया है. लेकिन अवशेष के रूप पर में पत्थर के दो विशाल चौखट के ऊपर एक बहुत बड़ा पत्थर रखा गया है. जिसे अब भी देखा जा सकता है. मंदिर के लगभग 500 गज दूरी पर एक देउर मंदिर भी है. जिसका शिवलिंग का पत्थर विशेष प्रकार का है. इस ध्वस्त मंदिर को देव मंदिर भी कहा जाता है. कुछ दूरी पर सोना टुकू नामक स्थान है. ग्रामीणों ने बताया कि सोना का अर्थ तो सोना ही होता है. परंतु टुकू का अर्थ पत्थर होता है. कहा जाता है कि इस पत्थर के अंदर प्राचीन काल में सोना रखा गया था. प्रारंभ में सोना टुकू में एक दरार जैसा गड्ढा था. उस गड्ढे में काफी सोना चांदी रखा गया था. बाद में दरार के ढक जाने से सोना पत्थर के अंदर ही रह गया. इसलिए इसे सोना टुकू कहा जाता है. पहाड़ में एक विशाल पत्थर है. जिससे खेलड़ी पत्थर कहा जाता है. इसमें नाचने वाली औरत व वाद्य यंत्र का चित्र अभी भी अंकित है. यहां पर राजा महाराजा नाच गान किया करते थे. मान्यता है कि इस क्षेत्र के ओझागुनी अपने गुणगान में कमलपुर के नकटी महादेव, रुद्रपुर के बूढ़ा महादेव, भिखमपुर के चराईहगा महादेव बरवाडीह के नकटी महादेव, हरिहरपुर के जोगी लाता, खेतली के ब्रहमदेवता, मझगांव के टांगीनाथ बाबा का सुमिरना करते हैं.
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