नाला. सुंदरपुर मनिहारी गांव में ग्रामीण सहयोग से आयोजित सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान, यज्ञ भक्तिमय माहौल में संपन्न हुआ. नवद्वीप के कथावाचक भागवत किशोर गोस्वामी महाराज ने कहा कि अठारह पुराणों में श्रीमद्भागवत पुराण सबसे श्रेष्ठ है. भागवत पुराण में वर्णित भगवान श्रीकृष्ण के विभिन्न लीलाओं का सप्रसंग व्याख्या की. अंतिम दिन सुदामा चरित का मार्मिक वर्णन किया. बताया कि सुदामा एक गरीब ब्राह्मण थे और भगवान कृष्ण के परम मित्र थे, जब सुदामा की आर्थिक स्थिति खराब हो गयी तो उनकी पत्नी सुशीला से सहा नहीं गया. सुशीला ने सुदामा से अपने परम मित्र द्वारकाधीश श्रीकृष्ण से मदद मांगने को कहा. पत्नी के कहने पर सुदामा द्वारका के लिए रवाना हुए. भूखे प्यासे चलते चलते वे थक गये, पैर में छाला पड़ गया. उसी भेष में वह किसी प्रकार द्वारका पहुंचे. वहां पहुंचने पर द्वार पालों ने उसे भिखारी समझ कर मुख्य द्वार में रोक दिया. सुदामा ने कहा कि द्वारकाधीश मेरा परम मित्र है. इसकी सूचना उन्हें देने को कहा. इसकी सूचना भगवान श्रीकृष्ण को दिया तो वे स्वयं द्वार तक आये. कृष्ण ने सुदामा को गले से लगा लिया और उनकी दुर्दशा देखकर उनके आंखों से आंसू आने लगे. कृष्ण ने सुदामा को सिंहासन पर बिठाया और उनके चरण धोए. सुदामा को विदा करने से पहले, कृष्ण ने सुदामा को अपने महल में रहने का प्रस्ताव दिया, लेकिन सुदामा ने अपने मित्र के साथ मिलकर अपनी फूंस की कुटिया में रहने का फैसला किया. भागवत कथा में सुदामा चरित, सच्ची मित्रता, भक्ति और विनम्रता का एक महत्वपूर्ण प्रसंग है. यह कथा हमें सिखाती है कि सच्ची मित्रता भौतिक संपत्ति पर आधारित नहीं होती, बल्कि भावनाओं और स्नेह पर निर्भर होता है. भगवान ने अपनी मित्रता को निभाते हुए उनकी दरिद्रता दुर्दशा को दूर किया. वहीं कंसवध की कथा सुनाया. कहा हमें सिखाती है कि बुराई पर अच्छाई की हमेशा विजय होती है. सात दिनों तक क्षेत्र का वातावरण भक्तिमय माहौल बना रहा.
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