नाला. बंदरडीहा पंचायत अंतर्गत सुन्दरपुर-मनिहारी गांव में सात दिवसीय संगीतमयी श्रीमद्भागवत कथा पांचवें दिन भी जारी रही. कथावाचक भागवत किशोर गोस्वामी महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण की बाल लीला, गोवर्धन पर्वत धारण, पुतना वध आदि का प्रसंग सुनाया. इसे सुनकर श्रोता भक्त भावविभोर हो गए. भगवान श्रीकृष्ण के सुमधुर बाल लीला का वर्णन करते हुए कहा भगवान श्री कृष्ण ने मात्र छह दिन के थे, तभी से उन्होंने लीलाएं की. इधर राजा कंस की चिंताएं दिनों दिन बढ़ती जा रही थी और उसे मृत्यु भय सता रहा था. राजा कंस ने निश्चय किया कि गोकुल में नवजात शिशु से लेकर छोटे बच्चों को मारने का निश्चय किया. इसलिए उन्होंने पुतना नामक राक्षसी को गोकुल भेजा. पुतना अपनी माया शक्ति से राक्षस वेश त्याग कर मनोहर स्त्री का रूप धारण कर स्तन में कालकुट बिष लेप कर आकाश मार्ग से गोकुल पहुंची. भगवान श्रीकृष्ण ने अपने दोनों हाथों से उसका कुच थाम कर उसके प्राण सहित दुग्धपान करने लगे. इस पीड़ा को पुतना सह नहीं पाए और भयंकर गर्जना से पृथ्वी, आकाश तथा अंतरिक्ष गूंज उठे. भगवान ने पूतना का वध कर मुक्ति दी. पुतना राक्षसी स्वरूप को प्रकट कर धड़ाम से भूमि पर बज्र के समान गिरी, उसका सिर फट गया और उसके प्राण निकल गये. जब यशोदा, रोहिणी और गोपियों ने उसके गिरने की भयंकर आवाज को सुना, तब वे दौड़ी-दौड़ी उसके पास गई. उन्होंने देखा कि बालक कृष्ण पूतना की छाती पर लेटा हुआ स्तनपान कर रहा है तथा एक भयंकर राक्षसी मरी हुई पड़ी है. उन्होंने बालक को तत्काल उठा लिया और पुचकार कर छाती से लगा लिया. कहा जब भगवान तीन माह के हुए तो करवट उत्सव मनाया गया. तभी शकटासुर नामक असुर मारने के लिए आया. भगवान ने संकट भंजन करके उस राक्षस का उद्धार किया. इसी तरह बाल लीलाएं, माखन चोरी लीला, ऊखल बंधन लीला, यमलार्जुन का उद्धार आदि दिव्य लीलाएं की है. श्रीकृष्ण की प्रत्येक लीला दिव्य है और हर लीला का महत्व आध्यात्मिक है. कहा एक बार जब ब्रजवासी गोवर्धन पूजा कर रहे थे. तब इंद्रदेव ने भारी बारिश करने लगे एवं गोवर्धन पूजा को बंद करना चाहा, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली पर उठाकर इंद्र का अभिमान को तोड़ा एवं ब्रजवासियों को गोवर्धन पूजा करने को कहा. भगवान कृष्ण की बाल लीलाओं के माध्यम से सिखाती है कि भक्ति और प्रेम से भगवान को प्राप्त किया जा सकता है. यह कथा हमें सिखाती है कि हमें अभिमान नहीं करना चाहिए और कर्म करना चाहिए, फल की इच्छा नहीं रखनी चाहिए. भागवत कथा सुनने से मन शांत होता है. सभी प्रकार के तनाव दूर होता है. उनके सहयोगियों के द्वारा एक से एक भजन प्रस्तुत कर श्रोताओं को झूमने के लिए विवश कर दिया. इस भागवत कथा ज्ञान यज्ञ से आसपास क्षेत्र का वातावरण भक्तिमय हो गया है.
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