जामताड़ा. दुलाडीह नगर भवन में आयोजित दो दिवसीय संथाली भाषा ओलचिकी साहित्य पारसी वार्षिक अधिवेशन सह मांझी परगना सम्मेलन का समापन सोमवार को हुआ. सम्मेलन में पूर्व मुख्यमंत्री चंपाई सोरेन मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए. इस अवसर पर उन्होंने संताल परगना में आदिवासियों की घटती संख्या और विलुप्त होती संस्कृति पर चिंता व्यक्त की. उन्होंने कहा कि इसे बचाने के लिए सभी को एकजुट होकर आंदोलन करना होगा और अधिक से अधिक लोगों को जोड़ना होगा. उन्होंने संथाल आदिवासियों की रक्षा के लिए आंदोलन की आवश्यकता पर जोर दिया और आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष का आह्वान किया. उन्होंने घोषणा की कि इस तरह का अधिवेशन संताल परगना स्तर पर आयोजित किया जाएगा, जहां 10 लाख आदिवासियों को एकजुट किया जाएगा. इस अधिवेशन में झारखंड के अलावा बिहार, बंगाल और ओडिशा से भी आदिवासी भाग लेंगे. अधिवेशन में संथाली भाषा और संस्कृति के संरक्षण के प्रति प्रतिबद्धता जताई गयी. इसने संथाली भाषा और संस्कृति के प्रति जागरूकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. झारखंड के विभिन्न हिस्सों से संथाली भाषा के साहित्यकार, लेखक और बुद्धिजीवी भी इसमें शामिल हुए. अधिवेशन में संथाली भाषा और साहित्य के विकास पर चर्चा की गयी और कई सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये गए. इस मौके पर सिद्धो-कान्हू के छठे वंशज मंडल मुर्मू ने कहा कि वे आदिवासी शहीद परिवार के सदस्य हैं. उनके पूर्वजों ने समाज और जल-जंगल-जमीन की रक्षा के लिए बलिदान दिया है. उन्होंने कहा कि इतिहास में संताल हूल को सम्मानजनक स्थान प्राप्त है, लेकिन झारखंड प्रदेश बनने के 25 साल बाद भी संताल समाज का समुचित विकास नहीं हो सका है. स्वागत भाषण सुनील हेम्ब्रम ने दिया. कार्यक्रम में चेतन्य प्रसाद मांझी, मदन मोहन सोरेन, धर्मेज्य हेम्ब्रम, आसेका सचिव शंकर सोरेन, लखाई बास्के, सुभाष चंद्र मांडी, शिबू टुडू, रामो टुडू सहित अन्य उपस्थित थे.
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