बिंदापाथर. बड़वा गांव में श्रीमद्भागवत कथा के छठे दिन वृंदावन धाम के कथावाचक महेशाचार्य महाराज ने “महारास लीला व रुक्मिणी विवाह ” आदि प्रसंग का मधुर वर्णन किया. कहा गोपियों ने भगवान श्रीकृष्ण से उन्हें पति रूप में पाने की इच्छा प्रकट की. इसके लिए भगवान ने महारास का आयोजन किया. शरद पूर्णिमा की रात को यमुना तट पर गोपियों को मिलने के लिए कहा गया. सभी गोपियां सज-धज कर नियत समय पर यमुना तट पर पहुंच गयी. उनकी बांसुरी की सुरीली धुन सुनकर सभी गोपियां अपनी सुध-बुध खोकर कृष्ण के पास पहुंच गयी. उन सभी गोपियों के मन में कृष्ण के नजदीक जाने, उनसे प्रेम करने का भाव तो जागा, लेकिन यह पूरी तरह वासनारहित था. इसके बाद भगवान ने रास आरंभ किया. माना जाता है कि वृंदावन स्थित निधिवन ही वह स्थान है, जहां श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था. यहां भगवान ने एक अद्भुत लीला दिखायी. जितनी गोपियां थीं, उतने ही श्रीकृष्ण के प्रतिरूप प्रकट हो गए. सभी गोपियों को उनका कृष्ण मिल गया और दिव्य नृत्य एवं प्रेमानंद शुरू हुआ. श्रीकृष्ण ने अपने हजारों रूप धारण कर वहां मौजूद सभी गोपियों के साथ महारास रचाया, लेकिन एक क्षण के लिए भी उनके मन में वासना का प्रवेश नहीं हुआ. वहीं रुक्मिणी विवाह का वर्णन करते हुए कथावाचक ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस प्रकार सब राजाओं को जीत लिया और विदर्भ राजकुमारी रुक्मिणी को द्वारका में लाकर उनका विधिपूर्वक पाणिग्रहण किया. उस समय द्वारकापुरी के घर-घर उत्सव मनाया जाने लगा. जहां-तहां रुक्मिणीहरण की गाथा गायी जाने लगी. उसे सुनकर राजा और राज कन्याएं अत्यंत विस्मित हो गयी. महाराज भगवती लक्ष्मी को रुक्मिणी के रूप में साक्षात लक्ष्मीपति भगवान श्रीकृष्ण के साथ देखकर द्वारकावासी परम आनंदित हो उठे. भागवत कथा के साथ-साथ भजन संगीत भी प्रस्तुत किये गए. श्रोता भावविभोर होकर कथा स्थल पर भक्ति से झूम उठे.
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