बिंदापाथर. बड़वा गांव स्थित राधा गिरधारी मंदिर परिसर में सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा के चतुर्थ दिन वृंदावन धाम के कथावाचक महेशाचार्य जी महाराज ने श्रीमद्भागवत कथा के अंतर्गत “भगवान राम एवं भगवान श्रीकृष्ण जन्मोत्सव प्रसंग का मधुर वर्णन किया. कहा कि दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे ना कोय. जो सुख में सुमिरन करे, तो दु:ख काहे को होय. भावार्थ: दुःख में हर इंसान ईश्वर को याद करता है, लेकिन सुख के समय भूल जाता है. अगर सुख में भी ईश्वर को याद करो तो दुःख कभी आएगा ही नहीं. कहा कि भगवान श्रीकृष्ण किसी के लिए अवतार हैं, तो किसी के लिए गीता का उपदेश देने वाले ब्रह्मनिष्ठ हैं. एक कृष्ण के इतने रूप, इतने चरित्र हैं कि जनमानस बस इतना ही कह सका, ‘हे कृष्ण! तुम सोलह कला सम्पूर्ण हो. इससे अधिक हम और कुछ नहीं कह सकते.’ श्रीकृष्ण को सम्पूर्ण अवतार, महा अवतार कहते हैं. कहा कि श्रीकृष्ण का जन्म भक्तों के उद्धार के लिए और दुष्टों के संहार के लिए हुआ. यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत. अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्. ‘जब-जब धर्म की हानि होगी, जब-जब अधर्म बढ़ेगा, तब-तब दुष्टों का नाश करने और साधु अन्त:करण के व्यक्तियों का कल्याण करने मैं आता हूं.’ श्रीकृष्ण ने ‘गीता’ में यह वचन स्वयं कहा है. ‘कृष्ण’ शब्द का अर्थ है कि जो आकर्षित करने की शक्ति रखता है, जिसके भीतर चेतनता पूरे शिखर पर है. जैसे चुम्बक का काम है लोहे को अपनी ओर खींचना, ऐसे ही संसार का कल्याण करने को, जीवों का उद्धार करने को, जीवों को सन्मार्ग पर लाने को, खुद भगवान अपने ही रूप को एक जगह एक विशेष रूप में समाहित कर लेते हैं. उनके इस प्रकटीकरण को ‘अवतार’ कहा जाता है. महाराज ने कहा कि भगवान के दो तरह के अवतार होते हैं- नित्य और निमित्त. निमित्त अवतार किसी कारण से आते हैं, जैसे श्रीकृष्ण आये कंस, शिशुपाल, जरासंध आदि दुष्टों से समाज को छुटकारा दिलाने के लिए. नित्य अवतार होते हैं ब्रह्मनिष्ठ संत. ये किसी कारण से नहीं, किसी एक रावण या कंस को मारने नहीं, किसी एक के उद्धार के लिए नहीं, बल्कि सबके उद्धार के लिए आते हैं. कहा कि भगवान श्रीकृष्ण का जीवन ही संघर्ष से शुरू हुआ, लेकिन इसकी शिकन कभी उनके चेहरे पर नहीं दिखी. वह हमेशा मुस्कराते और बंशी बजाते रहते थे. समस्याओं को ऐसे ही मुस्कराते हुए सुलझाने की सीख औरों को भी देते थे. कथा के दौरान झांकी प्रस्तुत कर भगवान श्रीकृष्ण का आविर्भाव एवं जन्मोत्सव मनाया गया. मानो कुछ क्षण के लिए आयोजन स्थल नंदालय बन गया. उपस्थित भक्त-वैष्णव धार्मिक नृत्य के साथ लंबे समय तक झूमते रहे.
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